प्रधानमंत्री मोदी बेशक भारत के सबसे लोकप्रिय नेताओं में हैं। लेकिन विदेश में किसी प्रधानमंत्री को लोकप्रिय बनाने में उस देश के विदेश मंत्री और विदेश मंत्रालय की बहुत बड़ी भूमिका होती है। इस मामले में विदेश मंत्री एस. जयशंकर पिछड़ रहे हैं। यह मानना है वरिष्ठ पत्रकार और लेखक प्रभु चावला का। हालांकि उनका यह अपना नजरिया है।
यूक्रेन में रूसी हमले की आशंका क्यों जताई जा रही है? क्या युद्ध का उन्माद जानबूझकर पैदा किया जा रहा है? आख़िर दुनिया की कुल कमाई के हर सौ डॉलर में से लगभग तीन डॉलर सेना पर क्यों खर्च होता है?
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की मौजूदा स्थिति के लिए कौन ज़िम्मेदार है? इसकी मज़बूती क्या है और किस ताक़त के दम पर यह पार्टी पुनर्जीवित हो सकती है?
पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं तो मौजूदा राजनीति का रुख कैसा है? क्या राजनीतिक विचारधाराएँ मायने रखती हैं और क्या इस पर राजनीतिक विमर्श हो रहा है?
क्या आनाकानी करने वाले और सुस्त व चापलूस कोरोना विशेषज्ञों की वजह से केंद्र सरकार कोरोना से निपटने में धीमे चल रहा है और क्या इससे नरेंद्र मोदी को राजनीतिक नुक़सान होगा?
राजनयिक से राजनेता बने एस. जयशंकर के नेतृत्व में भारतीय विदेश नीति का इतना बुरा हाल है कि न तो किसी पड़ोसी देश से इसके अच्छे रिश्ते हैं न ही पाँच बड़े देश इसे पूछते हैं। ऐसे में विदेश मंत्री कब तक पद पर बने रहेंगे?
बीजेपी संसदीय बोर्ड में कई पद खाली हैं, सीवीसी, न्यायपालिका, अफ़सरशाही में कई पद खाली पड़े हैं, पर नरेंद्र मोदी या जे. पी. नड्डा को योग्य लोग नहीं मिल रहे हैं।
संसद में गृहमंत्री अमित शाह ने अनुच्छेद 370 और कश्मीर मुद्दे को एक बार फिर से छेड़ दिया है। तो इस पर इतना क्यों है विवाद? अनुच्छेद 370 और 35ए हटाने से देश और कश्मीर को क्या होगा फ़ायदा? 'प्रभु की टेढ़ी बात' में देखिए प्रभु चावला की क्या है राय।
प्रधानमंत्री मोदी 'न्यू इंडिया' की बात करते हैं। क्या उसमें किसानों की आय दुगुनी होगी? ब्यूरोक्रेसी पर लगाम लगेगी? मीडिया का डर दूर होगा? देखिए इन सवालों पर सत्य हिंदी के लिए 'प्रभु की टेढ़ी' बात।
चुनावों के पहले राजनीतिक नारे उछालना आम बात है, पर बीते कुछ सालों से जिस तरह ध्रुवीकरण को ध्यान में रख कर विभाजनकारी नारे उछाले गए हैं, क्या उससे लोकतंत्र मजबूत होगा?
मुख्यधारा की तमाम राष्ट्रीय पार्टियाँ जीत के लिए दल-बदलुओं के सहारे हैं। इन पार्टियों के दिग्गज नेता विचारधारा के आधार पर पार्टी को मजबूत करने के बजाय किसी तरह जीत हासिल करने में लगे हैं।
आज़ादी के बाद देश को सत्तर साल हो गये हैं, लेकिन इसके नेता एक किशोर की भाषा बोलते हैं। राष्ट्र व्यस्क हो गया है, लेकिन इसके नेता एक बुरे नौसिखिये की तरह आपस में लड़ते हैं।
बीजेपी के 'लौहपुरुष' लालकृष्ण आडवाणी का टिकट कट गया और वह पार्टी में दरकिनार कर दिये गये। क्या आडवाणी को ही अपनी ऐसी हालत के लिए ज़िम्मेदार माना जाना चाहिए। सुनिये, 'सच्ची बात' में प्रभु चावला को, वह क्या मानते हैं।
भारत लगातार यह दबाव बनाता रहा है कि जैश के मुखिया मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कर दिया जाए लेकिन चीन चार बार भारत के प्रस्ताव का विरोध कर चुका है।