लोकतंत्र में सरकार वैचारिक द्वंद्व के समाधान से बनती है। पर अब ऐसा नहीं होता है। ज़्यादातर लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में व्यक्ति विशेष ही विचारों का प्रतिनिधित्व करता है और मतदाता उसके राजनीतिक दृष्टिकोण पर ध्यान नहीं देते हैं। लखनऊ से लुधियाना तक चुनाव वाले राज्यों में आकाश पोस्टरों और बैनरो से पटे पड़े हैं। इनमें प्रमुख रूप से राजनेता छाए हुए हैं जो अपनी राजनीतिक ख़ूबियाँ गिनाते हुए दिखते हैं, इनमें सबसे प्रमुख वे नेता हैं, जिनकी नज़र मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है।
विधानसभा चुनाव: विचारधाराएँ मर चुकी हैं, व्यक्ति चिरायु हों
- विचार
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- 28 Feb, 2022

इस चुनाव का नतीजा जो भी हो, वह क्षेत्रीय नेतृत्व के लिए संघर्ष की नई सीमा रेखा और रणनीति तय करेगा। इससे सत्ता हट कर केंद्र से राज्यों तक पहुंच सकती है। जैसे जैसे केंद्र परिपक्व होता जाएगा, राज्यों में नया जोश और नई जान आती जाती है।
इनमें कोई राजनीतिक विमर्श नहीं है, सिर्फ़ उम्मीदवारों के कट-आउट लगे हुए हैं। यदि एक दल किसी दलित को उभार कर सामने लाने की बात करता है तो दूसरा दल यह बताने में लगा हुआ है कि उसका उम्मीदवार किसी राजघराने से नहीं है।