ऐसे समय में जब टीके का विरोध बगैर किसी औचित्य के किया जा रहा है, यह कहावत बिल्कुल सही है कि 'रोकथाम उपचार से बेहतर है'। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह चुनाव वाले राज्यों में चुनाव के काम में व्यस्त हैं और बाबू व टेक्नोक्रेट एकीकृत टीका नीति तैयार करने को लेकर अनिच्छुक हैं। वे प्रधानमंत्री के पास भरोसेमंद समाधान के लिए किसी तरह का शोध या अध्ययन भी ले जाने को तैयार नहीं हैं।
सुस्त और चापलूस कोरोना विशेषज्ञों की वजह से खराब हो रहा है ब्रांड मोदी!
- विचार
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- 20 Dec, 2021

नरेंद्र मोदी कई चुनावी युद्ध जीत चुके हैं और भविष्य में भी जीत सकते हैं। पर वे कोविड के ख़िलाफ़ लड़ाई में हार बर्दाश्त नहीं कर सकते। अभी कोई कदम उठाने से बचना और भविष्य में उस पर अफ़सोस करना निश्चित रूप से सरकार की रणनीति नहीं है।
इससे बुरा तो यह है कि कई लोगों के पास अधिकार होने और कुछ लोगों के दबदबे के कारण महामारी से निपटने का काम गंदला हो चुका है। अफ़सरशाही के कोरोना कप्तान यह सीख सकते हैं कि जो कुछ आज किया जा सकता है, उसे कल पर न छोड़ा जाए।
महामारी का डर पूरी दुनिया पर छाया हुआ है और अर्थव्यवस्थाओं को मानो लकवा मार गया है। इसके बावजूद दुनिया के वैज्ञानिक और स्वास्थ्य क्षेत्र के पेशेवर व प्रशासक लोग भलाई के बियाबान में खोए हुए हैं।