सत्ता लालच का वह अक्षय पात्र है जिससे बड़े और ऊँचे लोगों का मन कभी नहीं भरता है। सत्ता प्रतिष्ठान के जीनियस लोग अपने साम्राज्य के बाहर भी ताकत व रसूख बढ़ाने का रास्ता खोज लेते हैं। मोटे तौर पर राजनेता और नौकरशाह अपनी जागीर बढ़ाने के लिए लड़ते रहते हैं। अपवादस्वरूप एक जनरल इसमें शामिल हो गया है।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में क्या सेना का जनरल नैरेटिव तय कर सकता है?
- विचार
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- 20 Sep, 2021

वे विवेक का इस्तेमाल करने की सैनिक परंपरा का उल्लंघन करते हुए अपनी महत्वाकांक्षा को छुपाते नहीं हैं। पिछले सप्ताह उन्होंने अपने भविष्य के कामकाज की रूपरेखा खुद तय कर ली। रक्षा विभाग के नेतृत्व में परिवर्तन के बारे में कोई सरकारी बयान नहीं दिया गया है, प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ने भी अब तक कुछ नहीं कहा है। पर बिपिन रावत ने सार्वजनिक रूप से इसका एलान कर दिया।
सैनिक यूनिफॉर्म में ओलिवर ट्विस्ट, जनरल बिपिन रावत, हमारे मौजूदा चीफ़ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ़ को बहुत जल्दबाजी है, वे एक सैन्य मैकियावेली हैं, जो साजिश रच कर और गुपचुप बातचीत कर आज़ादी के बाद सबसे ताक़तवर सैनिक बन बैठे हैं।
वे फ़िलहाल चीफ़ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ़ हैं, इसके साथ ही रक्षा मंत्री के मुख्य सैन्य सलाहकार, सैनिक मामलों के सचिव और परमाणु कमान प्राधिकार के सैन्य सलाहकार भी हैं। वे तीन साल तक थल सेना के प्रमुख रहे और एक अनुशासित सैनिक के रूप में उनकी प्रतिष्ठा है।