loader

अफ़सरशाही और नीति आयोग में अहम बदलाव करेंगे मोदी?

क्या नरेंद्र मोदी की सरकार अफ़सरशाही के कामकाज के तरीके को बदल रही है और उन्हें पहले से अधिक चुस्त-दुरुस्त बना रही है? वरिष्ठ पत्रकार प्रभु चावला ने इस पर 'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' के कॉलम 'पावर एंड पॉलिटिक्स' में एक लेख लिखा है। प्रस्तुत है उसका अनुवाद। 
प्रभु चावला

क्या भारत की अफ़सरशाही का स्टील का बना कुख्यात ढाँचा अल्युमिनियम में तब्दील हो चुका है? मोदी सरकार ने अपनी पुरानी वीटो क्षमता का इस्तेमाल किया है और अफ़सरों की चाल को बेअसर कर दिया है। उन्हें लुटियन की दिल्ली में शिकवे- शिकायत करने और रात्रि भोज करने से काफी समय पहले ही रोक दिया गया है।

वे पिछले पाँच साल से नियमित रूप से दफ़्तर जा रहे हैं, फ़ाइलें निपटा रहे हैं और पहले से तय बैठकों में भाग ले रहे हैं। यदि हाल में रिटायर हुए अधिकारियों पर यकीन किया जाए तो निर्णय लेने का ढाँचा बहुत ही तेज़ी से बदल चुका है, उतनी तेजी से उनकी पोस्टिंग भी नहीं होती है। पारंपरिक रूप से नीचे से ऊपर फ़ाइलें जाती थीं, पर अब ऊपर से नीचे आती हैं।

ख़ास ख़बरें
पहले शीर्ष पर निर्णय लिए जाते हैं और उसके बाद के लोगों से उन्हें लागू करने को कहा जाता है। पहले वरिष्ठ स्तर की नियुक्तियों की जानकारी अफ़सरों को होती थी। अब जब कार्मिक विभाग मध्य रात को वेबसाइट पर नाम अपलोड करता है तो लोगों को झटका लगता है। मतिभ्रम के शिकार कुछ वरिष्ठ अफ़सर सामाजिक सम्मेलनों में सिर्फ अनुमान लगाते हैं।

कौन बनेगा मुख्य आर्थिक सलाहकार?

फ़िलहाल कॉफी टेबल पर यह गॉशिप की जा रही है कि वित्त मंत्री का मुख्य आर्थिक सलाहकार कौन बनेगा। क्या पहली महिला वित्त मंत्री को पहली महिला मुख्य आर्थिक सलाहकार मिलेगी? 

क्या लीक से हट कर काम करने वाले नरेंद्र मोदी ब्रेन्टवुड इंस्टीच्यूशन (विश्व बैंक व आईएमएफ़ सरीखे पश्चिमी संस्थान) से कोई अर्थशास्त्री लाएंगे या वे शुद्ध भारतीय अर्थशास्त्री चुनेंगे?

यह पद खाली हो रहा है, मौजूदा मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमणियन अपना कार्यकाल ख़त्म कर अकादमिक दुनिया में लौट रहे हैं।

तीन नाम?

मुख्य आर्थिक सलाहकार पद के लिए विज्ञापन दिया जा चुका है। पुरुष वर्चस्व वाले अर्थशास्त्रियों के गुट को पता नहीं कि प्रधानमंत्री का पेंचीदा दिमाग किस तरह काम करता है। सत्ता के गलियारे में तीन नाम उछाले जा रहे हैं।

डॉक्टर पमी दुआ

चंडूखाने की गप्प में सबसे ऊपर दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स की प्रोफ़ेसर डॉक्टर पमी दुआ का नाम है। उन्हें मोदी सरकार ने 2016 में भारतीय रिज़र्व बैंक के ताक़तवर मुद्रा नीति कमेटी की पहली महिला सदस्य नियुक्त किया था। वे शायद देश में काम करने वाली एकमात्र विश्वासयोग्य अर्थशास्त्री हैं।

पूनम गुप्ता

दूसरी देसी अर्थशास्त्री नेशनल कौंसिल ऑफ़ एप्लाइड इकोनॉमिक रीसर्च की महानिदेशक पूनम गुप्ता हैं। वे नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ़ पब्लिक फ़ाइनेंस एंड पॉलिसी की आरबीआई चेअर प्रोफ़ेसर हैं। उन्हें कुछ दिन पहले ही हाल में पुनर्गठित प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद के सात सदस्यों में एक नियुक्त किया गया था।

modi govt reshuffles beauraucracy chief economic advisor, NITI  Ayog - Satya Hindi
गीता गोपीनथ, मुख्य अर्थशास्त्री, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष

गीता गोपीनाथ

विदेशों में पढ़ने वाले कुछ अफ़सरों ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ का नाम भी चला दिया है। वह जनवरी 2022 में आाईएमएफ़ के पद से हटेंगी।

पहले के कई मुख्य आर्थिक सलाहकारों की तरह उनके भी अमेरिकी अकादमिक जगत के लोगों और कॉरपोरेट दुनिया के दिग्गज़ों से संपर्क हैं।


वे बहुत ही सौम्य तरीके से भारत के टेलीविज़न चैनलों पर बात करती हुई दिखती रहती हैं, जहाँ वह मैक्रोइकोनॉमिक्स पर कम और महामारी की अर्थव्यस्था पर अधिक बोलती हैं। इस पद पर नियुक्ति में एक अड़चन उनकी अमेरिकी नागरिकता हो सकती है।

मौजूदा प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव संन्याल को अनुमान के विपरीत सबसे आगे निकलने वाला माना जाता है क्योंकि वह हिन्दुत्ववादी अर्थव्यवस्था को लेकर प्रतिबद्ध हैं।

इन तीन नामों में से किसी एक का चुनाव एक सर्च कमिटी करेगी, जिसके बार में जानकारी अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है। अगला मुख्य आर्थिक सलाहकार कौन बनता है, इससे बजट 2022 की वैचारिक दिशा का अनुमान लग जाएगा।

विदुशी और देशी का मेल अर्थव्यवस्था के लिए ठीक है।

आर्थिक थिंक टैंक

प्रधानमंत्री अंत में आर्थिक थिंक टैंक को दुरुस्त कर रहे हैं। पिछले महीने उन्होंने सात सदस्यों वाले प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद का पुनर्गठन किया। आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद एक ग़ैर संवैधानिक, ग़ैरवैधिक, स्वतंत्र निकाय है जो प्रधानमंत्री को मैक्रोइकोनॉमिक विषयों मसलन महंगाई, माइक्रो फ़ाइनेंस और औद्योगिक उत्पादन पर सलाह देता है। इससे उम्मीद की जाती है कि यह सरकार को उन आर्थिक हलचलों के बारे में जानकारी दे, जिनसे आर्थिक विकास पर असर पड़ता हो। इस परिषद के प्रमुख बिबेक देबराय हैं, जो विदेश में पढे देशी अर्थशास्त्री हैं।

यह संकेत मिलता है कि मोदी मजबूत कॉरपोरेट रिश्तों वाले विदेशी टेक्नोक्रेट को लेकर गंभीर हैं, जो उन्हें नीति निर्धारण के लिए ज़रूरी जानकारी दे। सात में से चार सदस्य अभी भी निजी भारतीय व विदेशी वित्तीय संस्थाओं, कॉरपोरेट घरानों और बैंकों में काम करते हैं।

बंगाल के सांस्कृतिक झटके में डूबे बाबू

पहली नज़र में यह सामान्य प्रशासनिक काम लग सकता है। लेकिन गप्पे हांकने वाले अफ़सरों के लिए मोदी का कदम पश्चिम बंगाल के चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद पहला काम था। पिछले महीने आश्चर्यजनक घटना यह हुई कि डवेलपमेंट ऑफ़ म्यूज़ियम एंड कल्चरल स्पेसेज के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का पद ख़त्म कर दिया गया। सरकार ने पश्चिम बंगाल काडर के रिटायर्ड आईएएस अफ़सर का इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया। प्रधानमंत्री ने भारतीय धरोहर को पुनर्जीवित करने की अपनी महती योजना के तहत 2019 में सिंह को तीन साल के लिए नियुक्त किया था, उनका कार्यकाल सितंबर 2022 में ख़त्म होना था।

उन्हें कपड़ा मंत्रालय के सचिव पद से रिटायर होने के एक साल बाद पहले संस्कृति मंत्रालय का सचिव नियुक्त किया गया। अंदर ही अंदर चल रहे अफ़वाह के अनुसार, बीजेपी नेतृत्व का यह मानना था कि पूर्व विदेश मंत्री व वित्त मंत्री जसवंत सिंह के सहायक रह चुके सिंह बंगाल चुनाव के दौरान भगवा पार्टी के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के प्रतीक होंगे। उन्होंने कई म्यूजियमों का विस्तार किया और प्रधानमंत्री के कोलकाता दौरे पर उनके साथ थे। उन्हें तीन मूर्ति मार्ग स्थित जवाहरलाल नेहरू संग्रहालय को सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों के संग्रहालय में तब्दील करने की ज़िम्मेदारी भी दी गई थी। 

लेकिन मोदी ने कैबिनेट स्तर के एक मंत्री और दो राज्य मंत्रियों को नियुक्त करने के बाद पाया कि सिंह का प्रदर्शन बहुत उम्दा नहीं था। उनसे जो उम्मीदें की गई थीं, वे उसका एक हिस्सा भी नहीं कर सके। दरअसल अफ़सरशाही के लोग राजनीतिक संरक्षण में जितनी तेजी से उठते हैं, उससे अधिक तेज़ी से गिरते हैं।

modi govt reshuffles beauraucracy chief economic advisor, NITI  Ayog - Satya Hindi

नीति आयोग की भीड़भाड़

नीति आयोग के कामकाज में बदलाव किए जाने की बात सुनने में आ रही है। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने योजना आयोग को नीति आयोग के अधीन कर दिया था। यह उम्मीद की गई थी कि नीति आयोग भविष्य की योजनाओं को तेजी से लागू करेगा और सहकारी संघवाद व संवेदनशील शासन को आगे बढ़ाएगाा। यह उम्मीद की गई थी कि नीति आयोग सभी मुख्यमंत्रियों के साथ बीच बीच में बैठकें करता रहेगा। लेकिन पिछले साल में अब तक सिर्फ छह बार बैठकें हुई हैं।

सत्ता के गलियारों में यह माना जा रहा है कि नीति आयोग पर बाहर के तत्वों का दबदबा है, जो अलग-अलग क्षेत्रों में सुधार के साझेदार हैं। 
सलाहकारों, वरिष्ठ सलाहकारों और कई पेशेवर लोगों का यह समूह बातें ज़्यादा करता है और काम कम, पार्टियाँ ज्यादा करता है और योजनाएँ बनाने का काम उससे भी कम।

आधिकारिक रूप से नीति आयोग इंडेक्स बनाने वालों के समूह बनाने के लिए मशहूर है। इसने स्कूल, कॉलेज, ज़िला, अस्पताल और स्मार्ट सिटी के लिए विवादास्पद इंडेक्स बनाने का भी काम किया। यह इंडेक्स कैसे बनाया गया, यह अब तक रहस्य है।

प्रधानमंत्री ने गंभीर विश्लेषण के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन पहले ही कर दिया था। इस साल की शुरुआत में प्रधानमंत्री ने क्वालिटी कंट्रोल कौंसिल के अध्यक्ष आदिल ज़ैनुलभाई से कहा कि वह नीति आयोग को दिए कामों का विश्लेषण करें और उसमें बदलाव के सुझाव दें। उन्हें क्वालिटी कंट्रोल कौंसिल का अध्यक्ष सितंबर 2014 में बनाया गया था। 

ज़ैनुलभाई आईआईटी बंबई के ग्रैजुएट और हॉवर्ड बिज़नेस स्कूल के पोस्ट ग्रैजुएट हैं। वे अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपी मैकिंजे से तीन दशक तक जुड़े रहे और इसे भारतीय कामकाज के प्रमुख हो कर रिटायर हुए।

लेकिन नीति आयोग को मौजूदा रूप में बरकरार रखने का ख़त्म कर देने का फ़ैसला विधानसभा चुनावों के बाद ही लिया जाएगा। 

(साभार - द न्यू इंडियन एक्सप्रेस) 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
प्रभु चावला
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें