मोदी फ़ॉर्मूला
उनका फ़ॉर्मूला तय है, पहले अंक तय करो और उसके बाद उसे हासिल करने का तरीका पता करो। विपक्ष मोदी के सपनों की परियोजनाओं को समझने में नाकाम रहा, जिसका नतीजा यह हुआ कि वह देश के तीन-चौथाई इलाक़ों में ख़त्म हो गया।महिलाओं को रसोई गैस सिलिंडर देना हो, किसानों को कर्ज़ देना हो, सबको घर बना कर देना हो या डिजिटलाइजेशन करना हो, प्रधानमंत्री ने सुनिश्चित किया कि इस मामले से जुड़े सभी हिस्सेदार बेहतर प्रदर्शन करें या नष्ट हो जाएँ।
प्रशासन तंत्र की ख़ामी
मोदी के लिए बड़ा सोचना उनके आश्चर्यजनक मस्तिष्क का छोटा हिस्सा भर है। उनके विशाल प्रशासन तंत्र की ख़ामी यह है कि वह इन परियोजनाओं को लागू करने में नाकाम रहा। मोदी चौकन्ने थे, जब उन्होंने कहा, ‘भारत को 2024 तक 5 खरब डॉलर अर्थव्यवस्था बनाने चुनौती भरा है, लेकिन यदि सारे लोग मिल कर काम करें तो इसे हासिल किया जा सकता है।’“
2014 में 1.85 खरब डॉलर से अब 2.7 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था हम बन चुके हैं। हम बड़ी आसानी से अगले कुछ वर्षों में 5 खरब डॉलर तक पहुँच सकते हैं।
निर्मला सीतारमण, वित्त मंत्री
कपोल कल्पना नहीं
हालाँकि सीतारमण ने इसका रोड मैप बाद में बनाने पर छोड़ दिया, 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था मोदी के लिए कपोल कल्पना नहीं है। उन्होंने बीजेपी के कार्यकर्ताओं से कहा कि इस लक्ष्य को हासिल करना सिर्फ़ सरकार का काम नहीं है, उनमें से हरेक की ज़िम्मेदारी है। 21वीं सदी के ढाँचागत सुविधाओं की परियोजनाएँ शुरू ही होने वाली हैं, जिससे गाँव और शहर का संतुलन बन सकेगा, गाँव में भंडारण की क्षमता बनाई जाएगी, शहरों का आधुनिकीकरण होगा, राजमार्ग-हवाई अड्डे, जल मार्ग बनाए जाएँगे। सूचना प्रौद्योगिकी और ब्रॉड बैंड पर ज़ोर दिया जाएगा और 1.25 लाख किलोमीटर लंबी सड़कें गाँवों में बनाई जाएँगी।चुनौतियाँ
मोदी के सामने चुनौती यह है कि वह महंगाई और मुद्रा विनिमय दरों को निशाना बनाएँ और अर्थव्यवस्था को सही अर्थों में विस्तार दें।यह बहुत साफ़ है कि जीडीपी में वृद्धि प्रौद्योगिकी पर चलने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के राजस्व बढ़ाने से नहीं, रोज़गार पैदा करने से होती है।
असंवेदनशील अफ़सरशाही
मोदी ने 2014 में ‘मैक्सिमम गवर्नेंस, मिनिमम गवर्नमेंट’ का दावा किया था। पर केंद्र और राज्य सरकारों का आकार बढ़ता गया और उसके कामकाज में कोई सुधार नहीं दिखा। मंत्रियों के खर्च काफ़ी बढ़ गए।आयोग, कमेटी, विशेषज्ञ पैनल, सचिव स्तर के अफ़सरों की तादाद 25 प्रतिशत बढ़ गई। इनमें से ज़्यादातर लोगों का कार्यकाल बढ़ा दिया गया या उन्हें राज्य और केंद्र में सलाहकार के रूप में खपा दिया गया।
ढाई करोड़ सरकारी कर्मचारी
भारत में हर 25 नागरिक पर एक सरकारी कर्मचारी है। इसमें रक्षा और सार्वजनिक उपक्रमों के लोग शामिल नहीं हैं। जीडीपी का लगभग 10 प्रतिशत इनके वेतन और भत्ते वगैरह में चला जाता है। मोदी ने इन्हें मझधार में छोड़ने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, पर उन्हें जल्द ही उन लोगों से छुटकारा पा लेना चाहिए जो किसी काम के नहीं हैं और महाराष्ट्र जितना बड़ा है, उतनी जगह को घेरे हुए हैं।जर्जर ढाँचागत व्यवस्था
एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ढाँचागत सुविधाओं की 357 परियोजनाएँ, हरेक पर 150 करोड़ रुपये या उससे ज़्यादा खर्च होना था, उन पर होने वाला खर्च 3.39 लाख करोड़ रुपए बढ़ चुका है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘1,362 परियोजनाओं पर कुल 17,03,840 करोड़ रुपये खर्च होना था, पर अब उन पर 20,43,024 करोड़ रुपए खर्च हो सकता है।’अधिकतर सड़क और बिजलीघर परियोजनाएँ हैं, इसके लिए बहुत बड़े निवेश की ज़रूरत है। पर निगरानी और ज़िम्मेदारी तय किए बग़ैर इस विशाल निवेश से लाभ नहीं मिलेगा। सरकार को 25 प्रतिशत अतिरिक्त पैसे खर्च करने होंगे।
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