ललित सुरजन जी चले गए। 74 साल की उम्र भी जाने की कोई उम्र है लेकिन उन्होंने हमको अलविदा कह दिया। देशबंधु अख़बार के प्रधान संपादक थे। वह एक सम्मानित कवि व लेखक थे।
दिल्ली के आसपास के शहरों में कमाई के अवसर शून्य हो जाने के बाद गाँव की तरफ़ पैदल जाने वालों का रेला इंसानियत को चुनौती दे रहा है। इतनी लम्बी दूरी पैदल तय करने की योजना बनाना इस बात का साफ़ सबूत है कि दिल्ली में रहना असंभव हो गया है।
दिल्ली विधान सभा के इस चुनाव में बीजेपी के अभियान की कमान पूर्व अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह के हाथ में थी। चुनाव प्रचार के जितने भी तीर उनके पास थे सब चलाए गए। पर नतीजा उनके पक्ष में नहीं आया।
एक शानदार ज़िंदगी पूरी करके शौकत आपा के नाम जानी जाने वाली शौकत कैफ़ी (1928-2019) इंतक़ाल फरमा गयीं। शौकत आपा ने एक शानदार ज़िंदगी जी। वह बेहतरीन अदाकारा थीं।
कश्मीर में काफ़ी ज़्यादा हलचल है। सबकी निगाह इस बात पर लगी है कि क्या कश्मीरियत बहाल होगी, क्या कश्मीर में हालत सामान्य होंगे और क्या फिर से वादी-ए-कश्मीर जन्नत बन पायेगी?
ट्रंप ने एक बार फिर भारत की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। कश्मीर के बारे में मध्यस्थता की बात करके उन्होंने अपने आप को पाकिस्तानी मंसूबों के साथ खड़ा कर दिया है।
लोकतंत्र के लिए सत्ताधारी पार्टी का महत्व बहुत ज़्यादा है, पर विपक्ष की भूमिका भी कम नहीं है। विपक्ष के बहुत सारे नेता सत्ताधारी पार्टी में शामिल होना चाहते हैं। क्या यह देश की राजनीति के लिए सही है?
सत्ताधारी लोगों के भाषणों को सुनकर ऐसा लगा कि कश्मीर की समस्या के लिए केवल जवाहरलाल नेहरू ज़िम्मेदार थे। क्या नेहरू ज़िम्मेदार थे? क्या स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान कोई मायने नहीं रखता?