महात्मा गाँधी की अगुवाई में देश ने 1942 में ' अँग्रेज़ों भारत छोड़ो' का नारा दिया था। उसके पहले क्रिप्स मिशन भारत आया था जो भारत को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन किसी तरह का डॉमिनियन स्टेटस देने की पैरवी कर रहा था। देश की अगुवाई करने की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस ने स्टेफ़ोर्ड क्रिप्स को साफ़ मना कर दिया था। कांग्रेस ने 1929 की लाहौर कांग्रेस में ही फ़ैसला कर लिया था कि देश को पूर्ण स्वराज चाहिए। लाहौर में रावी नदी के किनारे हुए कांग्रेस के अधिवेशन में तय किया गया था कि पार्टी का लक्ष्य अब पूर्ण स्वराज हासिल करना है। उस अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस अध्यक्ष थे। 1930 से ही देश में 26 जनवरी के दिन स्वराज दिवस का जश्न मनाया जा रहा था। इसके पहले कांग्रेस का उद्देश्य होम रूल था, लेकिन अब पूर्ण स्वराज चाहिए था। कांग्रेस के इसी अधिवेशन की परिणति थी कि देश में 1930 का महान आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ। नमक सत्याग्रह या गाँधी जी का दांडी मार्च कांग्रेस के इसी फ़ैसले को लागू करने के लिए किए गए थे।
इतिहास बदलने से भी क्या नेहरू की शख़्सियत मिट जाएगी?
- विचार
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- 14 Nov, 2019

आज यानी 14 नवंबर को जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन है। और बाल दिवस भी। यानी नेहरू और देश के निर्माण में उनके योगदान को याद करने का दिन। लेकिन आज उनको भुलाने के लिए कुछ ताक़तें लगी हुई हैं। कुछ तथाकथित इतिहासकारों के सहारे भारत के इतिहास के पुनर्लेखन का कार्य चल रहा है, जिसमें बच्चों के दिमाग़ से नेहरू सहित बहुत सारे लोगों के नाम ग़ायब करने के प्रयास किए जा रहे हैं जिससे कि वे नेहरू के बारे में कुछ जान ही नहीं पाएँ। क्या इससे नेहरू के नाम को मिटाया जा सकेगा?
वास्तव में 1942 का 'भारत छोड़ो' आन्दोलन एक सतत प्रक्रिया थी जो 1930 में शुरू हो गयी थी। जब 1930 के आन्दोलन के बाद अँग्रेज़ सरकार ने भारतीयों को ज़्यादा गंभीरता से लेना शुरू किया लेकिन वादाख़िलाफ़ी से बाज़ नहीं आए तो आंदोलन लगातार चलता रहा। इतिहास के विद्यार्थी के लिए यह जानना ज़रूरी है कि जिस कांग्रेस के अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू थे उसी अधिवेशन में देश ने पूर्ण स्वराज की तरफ़ पहला क़दम उठाया था।