दिल्ली के शाहीन बाग़ में क़रीब एक महीने से बड़ी संख्या में औरतें धरने पर बैठी हैं। यमुना नदी के किनारे बसा हुआ शाहीन बाग़ दिल्ली और नोएडा को जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण सड़क पर स्थित है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया इसी इलाक़े में है। नागरिकता एक्ट 1955 में हुए दिसंबर 2019 के संशोधन पर केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ जामिया में छात्रों का विरोध-प्रदर्शन हुआ था। पुलिस ने कैम्पस और पुस्तकालय में घुसकर छात्रों पर हिंसक हमला किया था। पुलिस का आरोप है कि उस विरोध-प्रदर्शन में बहुत सारे बाहरी लोग भी आ गए थे लेकिन मारपीट का शिकार मूल रूप से जामिया के छात्र ही हुए थे। उस सरकारी ज़्यादती के ख़िलाफ़ देश भर में विरोध हुआ था। जामिया के शाहीन बाग़ में भी कुछ महिलाएँ विरोध करने के लिए जमा हो गयी थीं। उनको शायद उम्मीद थी कि सरकार उनसे बातचीत करेगी और जामिया में पुलिस की ज़्यादती के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई करेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह धरना नागरिकता क़ानून 1955 में ही संशोधन के ख़िलाफ़ एक आंदोलन की शक्ल ले चुका है और आज पूरी दुनिया में शाहीन बाग़ की औरतों के आंदोलन का नाम जाना पहचाना जा रहा है।
शाहीन बाग़ में 'गाँधी के सत्याग्रह' से कैसे निपटेगी मोदी सरकार?
- विचार
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- 17 Jan, 2020

दिल्ली के शाहीन बाग़ में क़रीब एक महीने से बड़़ी संख्या में महिलाएँ धरने पर बैठी हैं। इसमें महात्मा गाँधी के सत्याग्रह गूँज सुनाई दे रही है। सत्ता को देखना होगा कि अपनी बात को शान्तिपूर्वक कहने की कोशिश कर रहे लोगों को नज़रअंदाज़ करने का जोखिम न उठाए क्योंकि निहत्थे इंसान के पास अगर गाँधी का आत्मविश्वास आ जाए तो उसको पराजित करना असंभव होता है।
शाहीन बाग़ का आंदोलन इस देश के इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना बन चुका है। महात्मा गाँधी के सत्याग्रह के प्रयोग को शाहीन बाग़ के ज़रिये पूरी दुनिया में नए तरीक़े से फैलाया जा रहा है। यह अजीब इत्तिफ़ाक़ है कि जहाँ शाहीन बाग़ की बस्ती आबाद है वह गाँधी जी की याद से जुड़ा हुआ विश्वविद्यालय है।