१९७३ में सुल्तानपुर शहर में सबसे जीवंत जगह मुझे बस अड्डे पर मौजूद अख़बार की दुकान लगती थी। उसी दुकान पर इलाहाबाद से छपने वाली एक पत्रिका ‘आगामी कल’ का दर्शन हुआ था। उस दुकान को चलाने वाले बुज़ुर्ग में बहुत ही गंभीरता दिखती थी। मेरे हाई स्कूल के सहपाठी गया प्रसाद सिंह वकील बन चुके थे और सुल्तानपुर में वकालत करते थे। उनके घनिष्ठ मित्र राज खन्ना से वहीं मुलाक़ात हुयी, जो आज तक बहुत ही भरोसे के दोस्त हैं।