सीताराम येचुरी नहीं रहे। उनका निधन 72 वर्ष की आयु में हो गया। भारत में किसानों, आदिवासियों, भूमिहीनों, युवाओं, और श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली आवाज़ खामोश हो गयी। येचुरी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPI-M) के महासचिव तो थे ही। ज्योति बसु और बुद्धदेव भट्टाचार्य जैसी महान वाम विभूतियों के बाद येचुरी, भारतीय वामपंथी आंदोलन के निर्विवाद स्तंभ के रूप में उभरे। मार्क्सवादी विचारधारा में गहराई से निहित उनकी बुद्धिमत्ता और समाजवाद के प्रति उनकी अटूट निष्ठा ने उन्हें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी माकपा का एक मार्गदर्शक शक्ति बना दिया। संसद के गलियारों में येचुरी की उपस्थिति बेहद प्रभावशाली थी। वे न केवल एक जोशीले वक्ता थे, बल्कि एक तेज-तर्रार और बेहतरीन तर्कशास्त्री थे, जिन्हें सभी दलों के नेता सम्मान की दृष्टि से देखते थे। संवैधानिक और राजनीतिक मामलों पर उनकी पकड़ ने उन्हें सत्तापक्ष के लिए एक चुनौतीपूर्ण प्रतिद्वंद्वी बना दिया था। चाहे किसानों और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा हो या सरकार की जवाबदेही का सवाल, संसद में उनके भाषण स्पष्टता, विश्वास और लोकतंत्र के प्रति गहरी जिम्मेदारी से भरे होते थे।
सीताराम येचुरी: भारतीय वामपंथ के युगद्रष्टा का निधन, जानें कैसे याद किए जाएँगे
- श्रद्धांजलि
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- 12 Sep, 2024

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के कद्दावर महासचिव सीताराम येचुरी को किस रूप में याद किया जाएगा? जानिए, उनका देश की राजनीति में क्या योगदान रहा।
उन्होंने अपने जीवन में वामपंथी आंदोलन को नए आयाम दिए और भारतीय राजनीति में अपनी खास पहचान बनाई। उनकी मृत्यु न केवल CPI(M) बल्कि पूरे भारतीय वामपंथ के लिए एक अपूरणीय क्षति है। येचुरी के निधन के साथ भारतीय राजनीति के एक युग का अंत हो गया, जिसने दशकों तक समाजवाद, समानता और सामाजिक न्याय की दिशा में कार्य किया।