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सीपीएम के कॉमरेड सीताराम येचुरी नहीं रहे

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के कद्दावर महासचिव सीताराम येचुरी का गुरुवार को निधन हो गया। वह 72 वर्ष के थे। वह सांस की बीमारी से जूझ रहे थे। उन्हें नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया था और आईसीयू में रखा गया था। सांस के संक्रमण के लिए उनका इलाज किया जा रहा था। वह निमोनिया जैसे संक्रमण से पीड़ित थे, लेकिन डॉक्टरों ने बीमारी के बारे में और ज़्यादा खुलासा नहीं किया था। येचुरी की हाल ही में मोतियाबिंद की सर्जरी हुई थी। 

सीपीआईएम ने एक बयान में कहा है, 'हम अत्यंत दुःख के साथ सूचित कर रहे हैं कि सी.पी.आई.एम. महासचिव, हमारे प्रिय कॉमरेड सीताराम येचुरी का आज 12 सितंबर को दोपहर 3.03 बजे एम्स, नई दिल्ली में निधन हो गया। वे श्वसन तंत्र के संक्रमण से पीड़ित थे, जिसके कारण जटिलताएँ आ गई थीं। हम कॉमरेड येचुरी के उत्कृष्ट उपचार और देखभाल के लिए डॉक्टरों, नर्सिंग स्टाफ और संस्थान के निदेशक को धन्यवाद देते हैं। सार्वजनिक दर्शन और श्रद्धांजलि की जानकारी दी जाएगी।'

क़रीब पचास साल पहले छात्र राजनीति से देश की रानजीति में क़दम रखने वाले येचुरी ने 2015 में प्रकाश करात के बाद सीपीएम के महासचिव का पद संभाला था।

येचुरी ने पार्टी के दिवंगत नेता हरकिशन सिंह सुरजीत के मार्गदर्शन में काम सीखा था, जिन्होंने गठबंधन युग की सरकार में प्रमुख भूमिका निभाई थी। उनके निर्देशन में सबसे पहले वी पी सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार और 1996-97 की संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान, दोनों ही सरकारों को सीपीआई (एम) ने बाहर से समर्थन दिया था। येचुरी ने अपने कौशल को तब और निखारा जब वामपंथी दलों ने पहली यूपीए सरकार का समर्थन किया और अक्सर नीति-निर्माण में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार पर दबाव डाला।

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उन्होंने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर सरकार के साथ बातचीत में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसके कारण करात के अड़ियल रुख के कारण वामपंथी दलों ने यूपीए-1 सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।

येचुरी 1974 में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया यानी एसएफआई में शामिल हुए और उसके अगले ही साल पार्टी के सदस्य बन गए। वह दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र रहे थे।

वह जेएनयू से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की पढ़ाई कर रहे थे, जब इंदिरा गांधी सरकार ने 1975 में आपातकाल लगाया और उन्हें कई अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्होंने बाद में राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी पीएचडी अधूरी रह गई।

जेल से बाहर आने के बाद येचुरी एक साल में तीन बार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। इसी दौरान उनकी मुलाकात प्रकाश करात से भी हुई, जो आजीवन उनके साथी रहे।

1992 में उन्हें पोलित ब्यूरो का सदस्य चुना गया। चार साल बाद वे उन नेताओं में शामिल थे जिन्होंने संयुक्त मोर्चा सरकार के लिए साझा न्यूनतम कार्यक्रम का मसौदा तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। 

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कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने उनके निधन पर शोक जताया है। उन्होंने कहा है, 'सीताराम येचुरी जी एक दोस्त थे। देश की गहरी समझ रखने वाले और भारत के विचार का संरक्षक। जिस तरह की बातचीत हम करते थे उसको मैं मिस करूंगा। दुःख की इस घड़ी में उनके परिवार, मित्रों और अनुयायियों के प्रति मेरी हार्दिक संवेदना।'

ममता बनर्जी ने कहा, 'यह जानकर दुख हुआ कि सीताराम येचुरी का निधन हो गया। मेरा मानना है कि वह एक अनुभवी सांसद थे और उनका निधन राष्ट्रीय राजनीति के लिए एक क्षति है। मैं उनके परिवार, मित्रों और सहकर्मियों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करती हूँ।'

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि वे सीताराम येचुरी के निधन से वह बहुत दुखी हैं। गडकरी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, 'सार्वजनिक जीवन में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। इस कठिन समय में उनके परिवार और प्रियजनों के प्रति हार्दिक संवेदना। ओम शांति।'

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क़मर वहीद नक़वी
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