70 साल पहले हम भारत के लोगों ने भारत के संविधान को अपना लिया था। इन 70 वर्षों में संविधान की स्थाई भावना को बदलने की कई बार कोशिश की गयी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट चौकन्ना रहा और जब भी कार्यपालिका और विधायिका ने संविधान की मूल भावना से छेड़छाड़ करने की कोशिश की, कोर्ट ने उन्हें सही रास्ता दिखा दिया। गोलकनाथ केस और केशवानंद भारती केस के ऐतिहासिक मुक़दमे इस बात के पक्के सबूत हैं कि संविधान को बदलने की कोशिश सफल नहीं होने दी गयी लेकिन अब स्थिति बदलती नज़र आ रही है।
संघ, बीजेपी को सेक्युलर शब्द से चिढ़ क्यों; संविधान बदलने की हो रही कोशिश!
- विचार
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- शेष नारायण सिंह
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- 24 Jan, 2020


शेष नारायण सिंह
मोदी सरकार के दूसरी बार सत्ता में आने के बाद से ही भारतीय संविधान सेक्युलर रहेगा या नहीं, इसे लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। बीजेपी के नेता संविधान की उस प्रस्तावना को बदलने की बात करने लगे हैं जिसमें लिखा है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। आरएसएस के नेता तो संविधान को ही सही नहीं मानते थे और एक समय उसको बदल डालने की कसमें खाया करते थे। आज उनकी सरकार है तो संविधान को तोड़ने-मरोड़ने की कोशिशें हो रही हैं।
इस बार कार्यपालिका ने बिना किसी संविधान संशोधन के ही संविधान की भावना को भटकाने की कोशिश करने का मन बना लिया है। अनुच्छेद 370 को हटाने और नागरिकता संशोधन क़ानून में बदलाव के लिए कोई भी संविधान संशोधन नहीं किया गया है। संसद के साधारण बहुमत के जरिये सरकार ने अपनी मंशा को राष्ट्र पर थोप दिया है। अभी यह विषय सुप्रीम कोर्ट में है लेकिन उससे पहले ही देश की जनता मैदान में उतर चुकी है।
शेष नारायण सिंह
शेषनारायण सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं।