सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए ट्रस्ट की घोषणा हो चुकी है। सभी को पता है कि राम जन्मभूमि-बाबरी मसजिद विवाद कोई धार्मिक प्रोजेक्ट नहीं था, वह एक राजनीतिक प्रोजेक्ट था। इस विवाद का संचालन करने वालों को भारी राजनीतिक लाभ भी मिला। बाबरी मसजिद को विवाद में लाने की आरएसएस की जो मूल योजना थी वह मनोवांछित फल दे चुकी है। आज केंद्र सहित अधिकतर राज्यों में आरएसएस के राजनीतिक संगठन, बीजेपी की सरकार है।
दिल्ली: कौन जीतेगा, केजरीवाल का काम या ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’?
- विचार
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- 8 Feb, 2020

दिल्ली के विधानसभा चुनाव में जहां आम आदमी पार्टी का फ़ोकस शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, बिजली के क्षेत्रों में किये गये काम पर रहा तो दूसरी ओर बीजेपी के नेताओं ने हिंदुस्तान-पाकिस्तान, शाहीन बाग़, कश्मीर और राम मंदिर को मुद्दा बनाने की कोशिश की। बीजेपी की ओर से केजरीवाल को हिन्दू विरोधी साबित करने की भी कोशिश की गयी। देखना होगा कि भावनात्मक मुद्दे भारी पड़ेंगे या केजरीवाल सरकार का पांच साल का काम उसे जीत दिलाएगा।
बीजेपी को यह सफलता एक दिन में नहीं हासिल हुई। 1946 में मुहम्मद अली जिन्ना के “डायरेक्ट एक्शन” के आह्वान के बाद जब पंजाब और बंगाल में सांप्रदायिक दंगे शुरू हुए तो आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने दंगाग्रस्त इलाक़ों में हिन्दुओं की बहुत मदद की थी। आरएसएस के कार्यकर्ताओं की लोकप्रियता अविभाजित पंजाब और बंगाल में बहुत ही ज़्यादा थी। उन दिनों आरएसएस का अपना कोई राजनीतिक संगठन नहीं था लेकिन यह माना जाता था कि जिसको भी आरएसएस वाले मदद करेंगे, उसे चुनावी सफलता मिलेगी। लेकिन आज़ादी मिलने के छह महीने के अन्दर ही महात्मा गाँधी की हत्या हो गयी।