इस बात में दो राय नहीं है कि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय इसलिए हुआ कि शेख अब्दुल्ला और जवाहरलाल नेहरू एक-दूसरे का बहुत ही ज़्यादा विश्वास करते थे, लेकिन विलय के बाद ही हालात इतने बिगड़ने शुरू हो गए कि नेहरू और शेख के बीच बहुत ही बड़े मतभेद हो गए। 1952 आते-आते तो दोनों के बीच बहुत बड़ी खाई बन चुकी थी। नेहरू की सरकार में हर आदमी शेख को नेहरू जी की निजी समस्या मानने लगा था। गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी ने तो एक बार नेहरू से कह ही दिया कि वल्लभ भाई (सरदार पटेल) सोचते हैं कि शेख अब्दुल्ला को डील करना नेहरू का ही काम है। सच बात यह है कि दिल्ली का हर अधिकारी और नेता यही समझता था।
शेख अब्दुल्ला, नेहरू में मतभेद के कारण नहीं सुलझी कश्मीर समस्या?
- विचार
- |
- |
- 22 Oct, 2019

आज़ादी के 70 साल बाद भी कश्मीर में शांति नहीं है। शांति के प्रयास तब भी विफल हुए थे जब नेहरू और शेख अब्दुल्ला के बीच मतभेद हुए थे। शेख अब्दुल्ला को गिरफ़्तार भी किया गया था। बाद में नेहरू को जब लगा कि कश्मीर की समस्या का समाधान शेख अब्दुल्ला के बिना नहीं हो सकता तो उन्होंने शेख को रिहा किया। हालाँकि, बाद की घटनाएँ कुछ ऐसी घटीं कि यह प्रयास भी सफल नहीं हुआ।
शेख दिन पर दिन मुश्किल पैदा करते जा रहे थे। उन्होंने 11 अप्रैल 1952 के दिन रणबीर सिंह पुरा में एक भाषण दे दिया जिसमें जवाहरलाल और उनके मतभेद साफ़ खुलकर सामने आ गए। भाषण में उन्होंने भारत और पाकिस्तान को एक-दूसरे के बराबर साबित करने की कोशिश की और भारतीय अख़बारों को ख़ूब कोसा। जवाहरलाल नेहरू ने उनके इस बयान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, उनके बयान की अनदेखी की।