आज़ादी के 76 साल में विभाजन को लेकर तरह-तरह के सवाल उठते रहे हैं। एक तो सवाल विभाजन की विभीषिका को लेकर ही उठ रहे हैं। ऐसे में क्या इसकी कल्पना की जा सकती है कि यदि देश बँटा नहीं होता तो क्या होता?
क्या बीजेपी की सरकारें स्कूलों में इतिहास की किताबें बदलेंगी? क्या पहले इतिहास में तथ्यों को सही नहीं रखा गया था या फिर अब भगवाकरण हो रहा है? जानिए, हरियाणा बोर्ड के इतिहास की किताब में क्या बदलाव किया गया।
हिंदुत्ववादी ताक़तें मुसलमानों को देशद्रोही और पाकिस्तान परस्त साबित करने में जुटी हैं । भारत बँटवारे के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जाता है । क्या आज़ादी के पहले सारे मुसलमान जिन्ना के समर्थक थे ? क्या सभी मुसलमान भारत बँटवारे के पक्ष में थे ? क्या है हकीकत ? जाने, इतिहास का वो पहलू जो भुला दिया गया ।
अपने पिछले आलेख में मैंने विभाजन की विभीषिका को एक स्मृति दिवस के रूप में मनाने के पीछे के मक़सद को ढूँढने की कोशिश की थी पर सफलता नहीं मिली। आलेख पर जो प्रतिक्रियाएँ मिली हैं उनसे कुछ संकेत ज़रूर मिलते हैं....
स्वतंत्रता तो हमें मिली पर उसकी भी एक कीमत चुकानी पड़ी- ‘विभाजन’ के रूप में। धर्म के आधार पर मुस्लिम बहुल पंजाब, बंगाल और पश्चिमोत्तर सीमा-प्रांत के हिस्से पाकिस्तान के रूप में आए।
14 अगस्त को विभाजन विभीषिका दिवस मनाने का फ़ैसला। विभाजन की त्रासदी को याद करने की कोशिश या फिर गहरी राजनीति ? आशुतोष के साथ चर्चा में प्रो आदित्य मुखर्जी और प्रो अपूर्व आनंद
14 अगस्त की वह ऐतिहासिक रात जब ब्रिटिश साम्राज्य का झंडा यूनियन जैक भारत में आख़िरी बार उतारा गया और जवाहर लाल नेहरू ने 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' का भाषण दिया।
मेरे ख्याल से न्यूक्लियर वॉर इज म्युचुअल सुसाइड। अगर लोग खुदकुश करना चाहते हैं तो उन्हें कोई नहीं रोक सकता है। लेकिन अक्ल की बात तो यही है कि जो सीमा बन चुकी हैं उन्हें मान लो और उन्हें अर्थहीन कर दो। मेरा ऐसा मानना है। यह कहना है पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक इश्तियाक अहमद का।
उनकी वजह से और जवाहलाल नेहरू न होते तो हिंदुस्तान का सत्यनाश पहले दिन से हो जाता। यह तो उनके प्रधानमंत्री काल के वह 17 साल हैं जिसने मॉडर्न इंडिया को बचाए रखा है। यह कहना है लेखक इश्तियाक अहमद का।
इश्तियाक़ पाकिस्तानी मूल के स्वीडिश नागरिक हैं जो स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र और इतिहास के प्रोफेसर रहे हैं। विभूति नारायण राय के साथ गुफ्तगू हुई।
प्रधानमंत्री मोदी ने किस आधार पर कहा कि भारत के बँटवारे के लिए नेहरू ज़िम्मेदार थे? क्या यह नेहरू के क़द को कम करने का बीजेपी का लगातार प्रयास का नतीजा नहीं है? क्या यह उसका नतीजा नहीं है जिसमें पटेल के क़द को बड़ा किया जाए? बँटवारे से सहमत होने की शुरुआत किसने की और इस मामले में नेहरू और पटेल की क्या स्थिति थी? देखिए आशुतोष की बात वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ के साथ चर्चा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में भाषण के दौरान भारत विभाजन के लिए इशारों-इशारों में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर आरोप लगाया, वल्लभभाई पटेल पर क्यों नहीं?