भारत की आज़ादी और आज़ादी के साथ ही 'धार्मिक बहुलता' के आधार पर हुए बँटवारे का ख़्याल आते ही एक सवाल मन में आता है कि अगर बँटवारा नहीं होता तो आज क्या होता? क्या भारत-पाकिस्तान और बांग्लादेश की जनता के हालात आज से बेहतर होते या बदतर होते? क्या अखंड भारत धर्म के नाम पर अधिक बँटा होता या जुड़ा होता? क्या विकास के पायदानों में वह ऊपर चढ़ा होता या नीचे होता? पड़ोसी चीन के साथ हमारे संबंध कैसे होते?