भारत के राजकाज में भारतीयों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए ब्रिटेन ने 1927 में सात ब्रिटिश सांसदों का एक दल बनाया जिसकी अध्यक्षता जॉन साइमन कर रहे थे और जिसकी वजह से इस दल का नाम साइमन कमिशन पड़ा। चूँकि इस कमिशन में कोई भारतीय नहीं था, इसलिए कांग्रेस और मुसलिम लीग के जिन्ना-नीत गुट ने उसका विरोध किया। तब ब्रिटेन के भारत मंत्री ने इन नेताओं को चुनौती दी कि यदि वे सक्षम हैं तो ख़ुद ही ऐसा संविधान तैयार करके पेश करें जिससे भारत के सारे लोग मोटे तौर पर सहमत हों। कांग्रेस ने यह चुनौती स्वीकार की और मोतीलाल नेहरू के नेतृत्व में बनी एक सर्वदलीय समिति ने भारत के भावी संविधान का एक प्रारूप तैयार किया जिसे नेहरू रिपोर्ट कहा जाता है। इस दल में जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस के अलावा लिबरल पार्टी के नेता तेजबहादुर सप्रू भी थे जो आंदोलनों के बजाय ब्रिटिश हुकूमत से बातचीत करके हल निकालने के हामी थे।