उनकी वजह से और जवाहलाल नेहरू न होते तो हिंदुस्तान का सत्यनाश पहले दिन से हो जाता। यह तो उनके प्रधानमंत्री काल के वह 17 साल हैं जिसने मॉडर्न इंडिया को बचाए रखा है। यह कहना है लेखक इश्तियाक अहमद का।
इश्तियाक़ पाकिस्तानी मूल के स्वीडिश नागरिक हैं जो स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र और इतिहास के प्रोफेसर रहे हैं। विभूति नारायण राय के साथ गुफ्तगू हुई।
बंगाल के विधानसभा चुनाव ने एक बार फिर कई सवाल खड़े कर दिये हैं। जिस तरह हिंदू-मुसलमान में बँटवारा किया जा रहा है, मुसलमानों को पराया बनाने की कोशिश की जा रही है, क्या वह देश हित में है?
नागरिकता विधेयक पर बहस के दौरान देश के गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि यह कांग्रेस थी जिस ने देश को धर्म के आधार पर विभाजित कराया, हमने नहीं। क्या यह सफेद झूठ नहीं है?
क्या भारत का विभाजन टाला जा सकता था? अंत-अंत तक जिन्ना की इच्छा यही थी कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान एक महासंघ का हिस्सा बनकर रहते। लेकिन नेहरू-पटेल जैसे कांग्रेसी नेता इस पर क्यों तैयार नहीं थे?
भारत के विभाजन से पहले परिस्थितियाँ कैसी थीं? क्या बँटवारे को टाला जा सकता था? पहली बार पाकिस्तान की माँग जिन्ना ने नहीं उठाई थी, लेकिन जिसने पाकिस्तान नाम दिया उसको देश क्यों निकाला गया?
आज़ादी की लड़ाई के लिए कांग्रेस भी लड़ रही थी और मुसलिम लीग भी। एक समझौते के बाद दोनों साथ आए। लेकिन फिर इसमें दरार पड़ गई। आज़ादी के लिए लड़ रहे थे तो क्यों टूटी कांग्रेस और मुसलिम लीग की 12 साल पुरानी दोस्ती?
यह कहना कि जिन्ना ही पार्टिशन के लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार थे, पूरी तरह ग़लत होगा। कारण यह कि अव्वल तो यह बँटवारा जिस दो क़ौमों के सिद्धांत के आधार पर हुआ था, वह जिन्ना का नहीं था।