पिछली कड़ी में हमने बात की कि भारत में ‘दो क़ौमों का सिद्धांत’ 19वीं सदी के अंतिम दशकों में सबसे पहले मुसलिम समाज सुधारक सर सैयद अहमद ख़ाँ ने दिया था जिनको लगता था कि यदि अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले गए तो हिंदू बहुमत वाले भारत में मुसलमानों के साथ न्याय नहीं हो पाएगा। डॉ. सैयद अहमद ख़ाँ के विचारों से प्रेरित और प्रभावित कुछ लोगों ने 1906 में मुसलिम लीग की स्थापना की और तत्कालीन ब्रिटिश वाइसरॉय मिंटो से मिलकर माँग की कि भारत के शासन से जुड़ा कोई भी भावी परिवर्तन हो तो उसमें मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल के तहत सीटें सुरक्षित की जाएँ ताकि ‘असहानुभूतिशील’ बहुसंख्यक हिंदुओं से उनकी सुरक्षा हो सके।