पिछली कड़ी में हमने बात की कि भारत में ‘दो क़ौमों का सिद्धांत’ 19वीं सदी के अंतिम दशकों में सबसे पहले मुसलिम समाज सुधारक सर सैयद अहमद ख़ाँ ने दिया था जिनको लगता था कि यदि अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले गए तो हिंदू बहुमत वाले भारत में मुसलमानों के साथ न्याय नहीं हो पाएगा। डॉ. सैयद अहमद ख़ाँ के विचारों से प्रेरित और प्रभावित कुछ लोगों ने 1906 में मुसलिम लीग की स्थापना की और तत्कालीन ब्रिटिश वाइसरॉय मिंटो से मिलकर माँग की कि भारत के शासन से जुड़ा कोई भी भावी परिवर्तन हो तो उसमें मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल के तहत सीटें सुरक्षित की जाएँ ताकि ‘असहानुभूतिशील’ बहुसंख्यक हिंदुओं से उनकी सुरक्षा हो सके।
विभाजन विभीषिका : बँटवारे के विरोधी रहे जिन्ना कैसे बने पाक के पैरोकार?
- विचार
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- 14 Aug, 2021

भारत-पाक बँटवारे के लिए कौन ज़िम्मेदार था? हम स्वतंत्रता के 75वें साल में प्रवेश कर रहे हैं। इस मौके पर सत्य हिन्दी की ख़ास पेशकश।
इस कड़ी में पढ़िए, जब कांग्रेस और मुसलिम लीग आज़ादी के लिए लड़ रही थीं तो दोनों की 12 साल पुरानी दोस्ती क्यों टूट गई थी?
उनकी इस माँग का विरोध किया था तब के एक जाने-माने बैरिस्टर मुहम्मद अली जिन्ना ने, जिनका कहना था कि एक तो मुसलिम लीग के ये नेता मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करते और दूसरे, उनकी यह माँग देश को तोड़ने वाली है। ध्यान दीजिए, यह बात जिन्ना ने कही थी कि मुसलमानों के लिए अलग सीटों की व्यवस्था देश को तोड़ने का काम होगा। जिन्ना 1896 से ही कांग्रेस से जुड़े हुए थे और वे कांग्रेस पार्टी की समावेशी विचारधारा के समर्थक थे। लेकिन वे लंबे समय तक अपने इन विचारों पर पूरी तरह क़ायम नहीं रह सके।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश