पिछली कड़ियों में हमने पढ़ा कि किस तरह 1928 के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने अपने दस-वर्षीय रिव्यू के तहत भारतीय शासन व्यवस्था में बदलाव के बारे में चर्चा के लिए ब्रिटेन के सात संसद सदस्यों का एक दल भारत भेजा। इस दल में कोई भी भारतीय नहीं होने से यहाँ के बड़े राजनीतिक दलों ने उसका विरोध और बॉयकॉट किया। तब ब्रिटेन के भारत मंत्री ने भारतीय नेताओं को चुनौती दी थी कि वे सब मिलकर भारत के भावी संविधान के बारे में कोई प्रारूप दें जो सर्वस्वीकार्य हो। कांग्रेस के मोतीलाल नेहरू के नेतृत्व में बनी एक सर्वदलीय समिति ने कुछ ही महीनों में अपनी रिपोर्ट दे दी थी जिसमें भारत के लिए ब्रिटेन के तहत एक डोमिनियन स्टेटस की माँग और सामुदायिक आधार पर सीटें बाँटने का विरोध था। यह बात मुसलिम लीग को नागवार गुज़री और उसने अपनी तरफ़ से एक अलग रिपोर्ट ब्रिटिश हुकूमत को देने की सोची। इसके लिए मार्च 1929 में दिल्ली में एक बैठक हुई जिसकी अध्यक्षता करते हुए जिन्ना ने मुसलमानों के हितों का ध्यान रखते हुए अपनी माँगें रखीं। इन माँगों का लुब्बेलुबाब उन्होंने 14 बिंदुओं में समेटा जिसे जिन्ना के 14 बिंदु कहते हैं