1937 के प्रांतीय और केंद्रीय विधानसभा के चुनावों में यह साबित हो गया कि भारत के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व न मुसलिम लीग करती है और न ही कांग्रेस। मुसलिम लीग जो मुसलमानों का एकल प्रतिनिधि होने का दावा करती थी, उसे पूरे भारत में मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों में भी केवल 25% पर जीत हासिल हुई जबकि कांग्रेस को 6% सीटों पर विजय मिली। बाक़ी सारी सीटें क्षेत्रीय मुसलिम पार्टियों को मिलीं। मुसलिम लीग किसी भी राज्य में सरकार बनाने में कामयाब नहीं हुई। संयुक्त प्रांत में जहाँ उसे 26 सीटें मिली थीं, वहाँ उसने कांग्रेस के साथ मिलीजुली सरकार बनाने का प्रस्ताव रखा लेकिन कांग्रेस ने उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया। कई विद्वान ऐसा मानते हैं कि कांग्रेस की इस बेरुखी से जिन्ना और मुसलिम लीग ने आगे जाकर कड़े तेवर अपना लिए।