1937 के प्रांतीय और केंद्रीय विधानसभा के चुनावों में यह साबित हो गया कि भारत के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व न मुसलिम लीग करती है और न ही कांग्रेस। मुसलिम लीग जो मुसलमानों का एकल प्रतिनिधि होने का दावा करती थी, उसे पूरे भारत में मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों में भी केवल 25% पर जीत हासिल हुई जबकि कांग्रेस को 6% सीटों पर विजय मिली। बाक़ी सारी सीटें क्षेत्रीय मुसलिम पार्टियों को मिलीं। मुसलिम लीग किसी भी राज्य में सरकार बनाने में कामयाब नहीं हुई। संयुक्त प्रांत में जहाँ उसे 26 सीटें मिली थीं, वहाँ उसने कांग्रेस के साथ मिलीजुली सरकार बनाने का प्रस्ताव रखा लेकिन कांग्रेस ने उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया। कई विद्वान ऐसा मानते हैं कि कांग्रेस की इस बेरुखी से जिन्ना और मुसलिम लीग ने आगे जाकर कड़े तेवर अपना लिए।
विभाजन विभीषिका : नेहरू के बयान ने जिन्ना से बनती हुई बात बिगाड़ी
- विचार
- |
- |
- 14 Aug, 2021

भारत-पाक बँटवारे के लिए कौन ज़िम्मेदार था? हम स्वतंत्रता के 75वें साल में प्रवेश कर रहे हैं। इस मौके पर सत्य हिन्दी की ख़ास पेशकश।
1937 के प्रांतीय और केंद्रीय विधानसभा के चुनाव परिणामों के बाद मुसलिम लीग और जिन्ना को समझ में आ गया था कि पृथक निर्वाचक मंडलों के तहत मुसलमानों के लिए अलग सीटों के बावजूद वे किसी राज्य में सत्ता में नहीं आ सकते। इस विशेष शृंखला की पाँचवी कड़ी में पढ़िए कि किस तरह इसके बाद मुसलमानों के लिए अलग और स्वतंत्र राज्य की माँग ने और ज़ोर पकड़ लिया।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश