1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने, ख़ासकर लेबर पार्टी की नई सरकार ने भारत को औपनिवेशिक स्वराज देने के अपने वादे पर अमल करना शुरू किया। साल 1946 में कैबिनेट मिशन नामक एक दल भारत आया और स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा के गठन की कार्रवाई शुरू की गई। कैबिनेट मिशन ने कल के भारत का एक राजनीतिक-प्रशासनिक ढाँचा भी प्रस्तावित किया जिसके अनुसार भारत के अंदर ही धर्म के आधार पर उत्तर-पश्चिम, पूर्व और मध्य-दक्षिण प्रांतों को मिलाकर तीन आंचलिक समूह बनने थे लेकिन इसके साथ ही किसी भी प्रांत को किसी भी समूह के साथ जाने या न जाने की अनुमति मिलनी थी।
विभाजन विभीषिका : पाक के भारत से जुड़ने के विरोधी क्यों थे नेहरू-पटेल?
- विचार
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- 14 Aug, 2021

भारत-पाक बँटवारे के लिए कौन ज़िम्मेदार था? हम स्वतंत्रता के 75वें साल में प्रवेश कर रहे हैं। इस मौके पर सत्य हिन्दी की ख़ास पेशकश।
इस कड़ी में पढ़िए, अंत-अंत तक जिन्ना की इच्छा यही थी कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान एक ढीलेढाले महासंघ का हिस्सा बनकर रहते। लेकिन नेहरू-पटेल सहित सभी कांग्रेसी नेता इस पर तैयार नहीं थे। क्यों तैयार नहीं थे?
इन प्रस्तावों का कांग्रेस और मुसलिम लीग दोनों ने स्वागत किया लेकिन बाद में कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों की व्याख्या को लेकर फिर मतभेद उभर गए। इस बीच जवाहरलाल नेहरू ने यह भी कह दिया कि संविधान सभा कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों में ज़रूरत पड़ने पर बदलाव भी कर सकती है। इससे जिन्ना भड़क गए। लीग ने 16 अगस्त को ‘डायरेक्ट ऐक्शन’ का अभियान शुरू किया जिसके बाद कलकत्ता और कुछ और इलाक़ों में भयंकर दंगे शुरू हो गए। इन दंगों के बाद लगने लगा कि विभाजन के अलावा अब कोई रास्ता नहीं बचा।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश