देश ने रविवार को आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मनाई। ‘आज़ादी’ शब्द का विस्तार बड़ा है। यह सिर्फ़ एक घटना भर नहीं है, बल्कि इतिहास की एक ऐसी तारीख़ है, जिस तक पहुँचने के लिए दमन और शोषण के एक दौर से गुज़रना पड़ा। इस दौर से गुज़र कर स्वतंत्रता तो हमें मिली पर उसकी भी एक कीमत चुकानी पड़ी- ‘विभाजन’ के रूप में। शाब्दिक अर्थ में, धर्म के आधार पर मुस्लिम बहुल पंजाब, बंगाल और पश्चिमोत्तर सीमा-प्रांत के हिस्सों को बाँट, पाकिस्तान के रूप में एक नए राष्ट्र-राज्य में ढाल कर।
भारत विभाजन - क्या भूलें और क्या याद रखें?
- इतिहास का सच
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- 15 Aug, 2021

स्वतंत्रता तो हमें मिली पर उसकी भी एक कीमत चुकानी पड़ी- ‘विभाजन’ के रूप में। धर्म के आधार पर मुस्लिम बहुल पंजाब, बंगाल और पश्चिमोत्तर सीमा-प्रांत के हिस्से पाकिस्तान के रूप में आए।
आज सवाल यह उठता है कि विभाजन को- इस ऐतिहासिक परिघटना (तथाकथित दुर्घटना?) को याद कैसे किया जाये? या, जब हम ‘विभाजन’ सुनते हैं, तो उसे किस प्रकार से ग्रहण करते हैं, किस प्रकार की छवियाँ मस्तिष्क में उभरती हैं? क्योंकि स्वतंत्रता मिल जाने के उल्लास में आगे आने वाली नस्लों को सिर्फ इतिहास के एक तथाकथित स्वर्णिम हिस्से को दिखलाया जाता रहा है, पर जो एक स्याह सच था (सआदत हसन मंटो का सियाह हाशिये शायद), जिसे अक्सर स्कूलों के इतिहास-पाठ्यक्रम में महज़ एक-दो अनुच्छेदों में समाप्त कर दिया जाता रहा, उसे याद रखने के लिए शायद ज़्यादा वजह नहीं ढूँढे गए। या बस, विभाजन से जुड़ी हिंसा को पॉपुलर मेमोरी में याद रखा जाता रहा, क्योंकि वो ही सबसे अधिक दिखने वाली चीज़ थी- और इस प्रकार विभाजन के पूरे सच को सीमित कर के छोड़ दिया गया, उसके देशव्यापी-कालव्यापी प्रभाव को नकार दिया गया।