लाहौर की सेंट्रल जेल में फांसी के फंदे पर भगतसिंह सहित तीन नौजवान 23 मार्च 1931 की शाम को हंसते-हंसते झूल गये और कुछ देर थरथराने के बाद शांत हो गए। कई बार लगता है कि इन तीन की तुलना में हम करोड़ों लोग कितने बौने हैं! आज पाकिस्तान के लाहौर में सेंट्रल जेल में भगतसिंह नहीं हैं! वहाँ एक बड़ा सा मॉल बन गया है और एक बड़ी सड़क बन गयी है जिस पर रात दिन गाड़ियाँ दौड़ती रहती हैं। आज अगर ये तीन सपूत बोल सकते और वे हमसे पूछते कि ‘हम भारत के लिए शहीद हुए या पाकिस्तान के लिए’, तो इस प्रश्न का न आपके पास कोई जबाव है न मेरे पास।