लाहौर की सेंट्रल जेल में फांसी के फंदे पर भगतसिंह सहित तीन नौजवान 23 मार्च 1931 की शाम को हंसते-हंसते झूल गये और कुछ देर थरथराने के बाद शांत हो गए। कई बार लगता है कि इन तीन की तुलना में हम करोड़ों लोग कितने बौने हैं! आज पाकिस्तान के लाहौर में सेंट्रल जेल में भगतसिंह नहीं हैं! वहाँ एक बड़ा सा मॉल बन गया है और एक बड़ी सड़क बन गयी है जिस पर रात दिन गाड़ियाँ दौड़ती रहती हैं। आज अगर ये तीन सपूत बोल सकते और वे हमसे पूछते कि ‘हम भारत के लिए शहीद हुए या पाकिस्तान के लिए’, तो इस प्रश्न का न आपके पास कोई जबाव है न मेरे पास।
गांधी भगत सिंह को बचाने में क्यों कामयाब नहीं हुए?
- इतिहास का सच
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- 29 Sep, 2021

भगत सिंह को फांसी के फंदे से बचान में महात्मा गांधी क्यों सफल नहीं हुए? जानिए गांधी ने इसके लिए क्या-क्या प्रयास किए थे?
इतिहास लाहौर से चला और क़रीब 17 साल बाद 30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिड़ला हाउस पहुँच गया। यहाँ एक 78 साल के बूढ़े आदमी को प्रार्थना के समय जाते हुए सामने से आकर कोई गोली मारता है। दिल्ली के बिड़ला हाउस में आज गांधी नहीं हैं। वहां गांधी की यादें रह गयी हैं।