पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई अगले सोमवार को होगी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि याचिकाकर्ताओं को पेगासस मामले पर सोशल मीडिया पर बहस नहीं करनी चाहिए।
हालांकि इज़रायली कंपनी का कहना है कि वह सिर्फ सरकार या उसकी एजेंसी को ही पेगासस सॉफ़्टवेअर देती है, सरकार ने संसद में कहा है कि उसने इस स्पाइवेअर के लिए एनएसओ से कौई सौदा नहीं किया है।
पेगासस सॉफ़्टवेअर के ज़रिए पेरियारवादी कार्यकर्ताओं और तमिल राष्ट्रवादियों की जासूसी भी की गई थी। इस स्पाइवेअर के निशाने पर नाम थामिज़ार काची, थांतीयार पेरियार द्रविड़र कषगम, मई 17 मूवमेंट जैसे संगठनों के लोग थे।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दो रिटायर्ड जजों की एक कमेटी गठित कर दी है, जो पेगासस जासूसी मामले की जाँच करेगी। जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस ज्योतिर्मय भट्टाचार्य इसके सदस्य बनाए गए हैं।
पेगासस सॉफ़्टवेअर के ज़रिए जिन लोगों की जासूसी की गई या जो लोग उसके निशाने पर थे, उनमें सीमा सुरक्षा बल, भारतीय सेना और खु़फ़िया एजेंसी रिसर्च एंड एनलिसिस विंग यानी रॉ के लोग भी हैं।
पेगासस सॉफ़्टवेअर के ज़रिए जासूसी कराए जाने पर दुनिया भर में तहलका मचा हुआ है। भारत ही नहीं, फ्रांस, मोरक्को, मेक्सिको, इज़रायल, ब्रिटेन व हंगरी समेत कई देशों में इसका व्यापक विरोध हुआ है, कुछ सरकारों ने इसकी जाँच के आदेश दे दिए हैं।
केंद्रीय जाँच ब्यूरो के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा को 23 अक्टूबर 2018 की बीच रात को जब बर्खास्त किया गया, उसके तुरन्त बाद पेगासस सॉफ़्टवेअर उनके तीन फ़ोन नंबरों पर नज़र रखने लगा।
पेगासस स्पाईवेयर सॉफ़्टवेयर जासूसी के मामले में जिन लोगों के फ़ोन की टैपिंग हुई है, उनमें उद्योगपति अनिल अंबानी और पूर्व सीबीआई चीफ़ आलोक वर्मा का नाम भी जुड़ गया है।
जासूसी पहली बार नहीं हुई, अंतर सिर्फ इतना है कि प्रौद्योगिकी बदल जाने से इसका स्वरूप बदल गया है। यह पहले से अधिक सूक्ष्म, घातक और गोपनीय बन गया है, इसे पकड़ना पहले से ज़्यादा मुश्किल हो गया है।