केंद्रीय जाँच ब्यूरो के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा को 23 अक्टूबर 2018 की बीच रात को जब पद से हटाया गया, उसके तुरन्त बाद पेगासस सॉफ़्टवेअर उनके तीन फ़ोन नंबरों पर नज़र रखने लगा।
वर्मा ही नहीं, उनकी पत्नी, बेटी और दामाद पर भी पेगासस की नज़र पड़ी। वर्मा से जुड़े आठ लोग इज़रायली कंपनी एनएसओ के बनाए स्पाइवेअर की जासूसी की जद में आ गए।
'द वायर' ने एक ख़बर में यह कहा है।
जो वर्मा अब तक दूसरों पर नज़र रखते आ रहे थे, पेगासस सॉफ़्टवेअर अब उन पर नज़र रख रहा था।
सीबीआई के तीन वरिष्ठ
पेगासस प्रोजेक्ट को एनएसओ का जो लीक हुआ डेटाबेस मिला है, उसमें सीबीआई के दूसरे वरिष्ठ अधिकारी राकेश अस्थाना और ए. के. शर्मा के फ़ोन नंबर भी हैं।
अस्थाना को भी सीबीआई से हटा दिया गया था, वे फिलहाल सीमा सुरक्षा बल में हैं।
ए. के. शर्मा 2019 तक अपने पद पर बने रहे।
राकेश अस्थाना प्रधानमंत्री मोदी के बेहद करीबी थे, इसलिए उनके फोन की जासूसी पर खलबली मची।
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रफ़ाल कनेक्शन?
वर्मा की बर्खास्तगी के तीन हफ़्ते पहले यानी 4 अक्टूबर को मशहूर वकील प्रशांत भूषण और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने वर्मा के दफ़्तर जाकर उनसे मुलाक़ात की थी। वे वर्मा से रफ़ाल मुद्दे पर शिकायत दर्ज कराने गए थे।
इस मुलाक़ात की खबर प्रमुखता से छपी थी और यह कहा गया था कि इन दोनों लोगों से रफ़ाल के मुद्दे पर मिलने की वजह से प्रधानमंत्री वर्मा से नाराज़ हो गए।
वर्मा ने प्रशांत भूषण और अरुण शौरी से मिलने के बाद भी रफ़ाल की सीबीआई जाँच के आदेश नहीं दिए थे। पर यह आशंका जताई गई थी कि राकेश अस्थाना के हमले के बाद ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है जिसमें वर्मा रफ़ाल सौदे की जाँच के आदेश दे दें।
बाद में वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसे देखने से इस मामले के बारे में कुछ अनुमान लगाया जा सकता है।
राजनीतिक दबाव?
वर्मा ने याचिका में कहा था, "एजेन्सी की कुछ विषयों की जाँच वैसी नहीं हो पाती है जैसी सरकार चाहती है। राजनीतिक नेतृत्व जो दबाव डालता है, वे सब लिखित में नहीं होते हैं, कई बार ये परोक्ष रूप से होते हैं और उनका सामना करने के लिए हिम्मत की ज़रूरत होती है।"
वर्मा ने कहा था कि उनके साथ न्याय नहीं हुआ और पूरी न्यायिक प्रक्रिया को उलट कर रख दिया गया ताकि उन्हें निदेशक पद से हटाया जा सके।
तब यह सवाल उठा था कि क्या चयन समिति ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दबाव में हटाया।
मोदी के करीबी थे अस्थाना
राकेश अस्थाना का मामला भी कम दिलचस्प नहीं है। वे गुजरात काडर के आईपीएस अफ़सर थे और उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद क़रीबी और कृपा पात्र थे।
वे अमित शाह के भी नज़दीक थे और 2004 में इशरत जहाँ कथित नकली मुठभेड़ कांड में शाह के साथ उनका नाम भी सुर्खियों में आया था।
2009 में गुजरात की एक महिला आर्किटेक्ट पर निगरानी रखने के मामले में भी राकेश अस्थाना का नाम आया था। उस समय खबरें छपी थीं कि मुख्यमंत्री के कहने पर ही उस महिला पर निगरानी रखी गई थी।
राकेश अस्थाना की सीबीआई में नियुक्ति का विरोध कुछ लोगों ने इस आधार पर किया था कि 2011 में स्टर्लिंग बायोटेक के एक घूसखोरी मामले में उनका नाम आया था और सीबीआई उसकी जाँच कर रही थी। अस्थाना का नाम उस कांड की एफ़आईआर में नहीं था, पर उनकी भूमिका की जाँच भी हो रही थी।
यह आरोप भी लगा था कि एक मांस व्यापारी मोईन क़ुरैशी से अस्थाना से घूस लिए थे। पेगासस सॉफ्टवेअर से जासूसी की सूची में कुरैशी का फ़ोन नंबर भी है।
क्या है पेगासस प्रोजेक्ट?
फ्रांस की ग़ैरसरकारी संस्था 'फ़ोरबिडेन स्टोरीज़' और 'एमनेस्टी इंटरनेशनल' ने लीक हुए दस्तावेज़ का पता लगाया और 'द वायर' और 15 दूसरी समाचार संस्थाओं के साथ साझा किया।
इसका नाम रखा गया पेगासस प्रोजेक्ट। 'द गार्जियन', 'वाशिंगटन पोस्ट', 'ला मोंद' ने 10 देशों के 1,571 टेलीफ़ोन नंबरों के मालिकों का पता लगाया और उनकी छानबीन की। उसमें से कुछ की फ़ोरेंसिक जाँच करने से यह निष्कर्ष निकला कि उनके साथ पेगासस स्पाइवेअर का इस्तेमाल किया गया था।
इसके तहत 40 पत्रकारों समेत भारत के 300 से ज़्यादा लोगों की जासूसी की गई।
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प्रोटोकॉल का हवाला
सरकार ने पेगासस प्रोजेक्ट पर कहा है, "सरकारी एजंसियाँ किसी को इंटरसेप्ट करने के लिए तयशुदा प्रोटोकॉल का पालन करती हैं। इसके तहत पहले ही संबंधित अधिकारी से अनुमति लेनी होती है, पूरी प्रक्रिया की निगरानी रखी जाती है और यह सिर्फ राष्ट्र हित में किया जाता है।"
सरकार ने ज़ोर देकर कहा कि इसने किसी तरह का अनधिकृत इंटरसेप्शन नहीं किया है।लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि पेगासस स्पाइवेअर हैकिंग करता है और सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून 2000 के अनुसार, हैकिंग अनधिकृत इंटरसेप्शन की श्रेणी में ही आएगा। सरकार ने अपने जवाब में यह भी कहा है कि ये बातें बेबुनियाद हैं और निष्कर्ष पहले से ही निकाल लिए गए हैं।
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