दिल्ली के इंद्रलोक में नमाजियों को ठोकर मारने की घटना हो या ट्रेन में तीन मुस्लिमों की पुलिसकर्मी द्वारा हत्या हो, क्या कानून के रखवालों में कुछ लोगों के रेडिकल हो जाने का यह संकेत है। अगर यह संकेत सही है तो फिर पूरे समाज के लिए खतरा है। आदिवासी के सिर पर पेशाब करने वाले और मनोज तोमर में कोई फर्क नहीं है। भारत में एक सड़े हुए समाज का निर्माण किया जा रहा है। प्रसिद्ध चिंतक और विचारक अपूर्वानंद कह रहे हैं कि इन घटनाओं को अपवाद न समझा जाए, पढ़िएः