अस्सी के दशक में जब पहली बार हमारी पीढ़ी क्रांति के स्वप्न या रोमांस के बीच अपने क्रांतिकारी लेखकों-कवियों को पहचानने का जतन कर रही थी तो तेलुगू के दो कवि और गायक हमें नायकों की तरह मिले थे- वरवर राव और गद्दर। गद्दर को हम उन दिनों गदर कहा करते थे- हमें लगता था कि वे बगावत के मूर्तिमान रूप हैं। आज बरसों बाद गूगल पर हिंदी में गद्दर पर कुछ खोजने की कोशिश की तो लगभग सारे विकल्प ‘गद्दार’ के आए- फूहड़ हिंदी फिल्मों और गीतों का एक सिलसिला परोसते हुए।