सुखद आश्चर्य हुआ कि भारत के बहुसंख्यक जन अभी भी मानते हैं कि उनका देश सारे धर्मों के लोगों का देश है।‘लोकनीति’ के नए देशव्यापी सर्वेक्षण में 79% लोगों ने कहा देश सबका है, सिर्फ़ 11% ने कहा कि यह मात्र हिंदुओं का देश है। चारों तरफ़ से रोज़ रोज़ जो खबर आती है, उससे मालूम होता है कि अलग-अलग विश्वासों के लोगों के साथ-साथ रहने का विचार इस देश में कब का तर्क कर दिया गया है। लेकिन यह सर्वेक्षण तो कुछ और कहता है। फिर इसकी व्याख्या कैसे करें?