“चुनाव के पहले तक का वक्त आनंदपूर्ण होता था, बहसों से भरा हुआ और एक क़िस्म के जश्न जैसा। तब भी जब दशकों तक प्रायः एक पार्टी का ही शासन हुआ करता था यह ख़ासा रंग भरा हुआ करता था। अब तो हरेक चीज़ और सबकुछ इतनी घटिया और घृणित है कि हम इसमें जश्न मनाने जैसा कुछ भी नहीं पाते। मैं सिर्फ़ उम्मीद करता हूँ कि एक समाज के तौर पर अगले 12 हफ़्ते हम इस अरुचिकर कटुता को झेलकर पार कर पाएँ।”