श्रद्धा वालकर की नृशंस हत्या को मीडिया ने लव जिहाद का रंग क्यों दे दिया? हत्यारा एक मुसलमान तो क्या सभी मुसलमानों को अपराधी करार दिया जाएगा? जब कोई हिंदू हत्यारा होता है तो वह इसे इस रूप में क्यों प्रस्तुत नहीं करता? क्या ये पूरे समुदाय को सांप्रदायिक चश्मे से देखना नहीं है? पूरे मामले को उसने सनसनीखेज़ क्यों बनाया, उसमें नाटकीयता क्यों भरी? क्या ये टीआरपी का खेल है या फिर सियासत का?