श्रद्धा वालकर की हत्या की अत्यंत क्रूर और बर्बर घटना ने देश को हिला कर रख दिया है। इस तरह की अमानवीय हिंसा की जितनी निंदा की जाए उतनी कम है। कुछ इसी तरह का भयावह घटनाक्रम निर्भया और तंदूर मामलों में भी हुआ था। हाल में अभिजीत पाटीदार ने जबलपुर के एक रिसोर्ट में शिल्पा की गला काट कर हत्या कर दी और उसका वीडियो भी बनाया। राहुल द्वारा गुलशन की हत्या भी उतनी ही सिहरन पैदा करने वाली थी।
श्रद्धा वालकर के मामले में चूँकि कथित हत्यारा अफताब (मुसलमान) है, अतः इसे लव जिहाद से जोड़ा जा रहा है। दरअसल इसका सम्बन्ध उन समस्याओं से हैं जिनका सामना अक्सर अंतर्धार्मिक विवाह करने वाली महिलाओं को करना पड़ता है।
जिन मामलों में अलग-अलग धर्मों के महिला और पुरुष परस्पर रिश्ते बनाते हैं, या लिव-इन में रहते हैं अथवा विवाह कर लेते हैं, उनमें से अधिकांश मामलों में माता-पिता, रिश्तेदारों और मित्रों की सहमति नहीं रहती। वे सब विद्रोही महिला से सम्बन्ध तोड़ लेते हैं। महिला निसहाय हो जाती है। ऐसे में पितृसत्तात्मक मानसिकता के चलते कई पुरुष महिलाओं के साथ मनमानी करने लगते हैं। वे हिंसक हो जाते हैं। ऐसा भारत में ही नहीं वरन पूरी दुनिया में होता है। महिलाओं का अपने परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों से कोई संपर्क नहीं रहता और वे किसी से मदद मांगने की स्थिति में नहीं रहतीं।
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मीडिया का एक हिस्सा श्रद्धा वालकर मामले के वीभत्स पहलुओं का अत्यंत विस्तार से बार-बार वर्णन कर टीआरपी बढ़ाने में लगा है। इससे समस्या और बढ़ गई है।
इस मामले को सांप्रदायिक मोड़ भी दे दिया गया है। इससे न सिर्फ यह पता चलता है कि हमारे देश में बांटने वाली राजनीति का किस कदर बोलबाला हो गया है बल्कि इससे अंतर्धार्मिक वैवाहिक संबंधो की असली समस्याओं की पहचान और निराकरण करने की प्रक्रिया भी बाधित होती है। जैसा कि जानीमानी मानवाधिकार कार्यकर्ता कविता कृष्णन कहती हैं, "मुद्दा यह नहीं कि एक समुदाय के पुरुष, दूसरे समुदाय की महिला के साथ अमानवीय बर्ताव करते हैं बल्कि मुद्दा यह है कि इस पर फोकस करने से हमारा ध्यान असली समस्या से भटकता है।"
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एक अन्य ट्वीट में तपन दास ने कहा, "हमारी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि हम अपनी बहनों और बेटियों को अपनी मुट्ठी में नहीं रख पाते। वे जो चाहे करने के लिए स्वतंत्र होती हैं। अगर माता-पिता और भाई हर बहन-बेटी पर नज़र रखेंगे कि वे कहाँ जातीं हैं तो मुझे नहीं लगता कि कोई इतनी जल्दी प्यार करने लग जाएगा। वे जाल में नहीं फंसेंगीं।" दोनों ट्वीटों के लेखकों की पितृसत्तात्मक सोच स्पष्ट है।
और यह तो सोशल मीडिया पर जो चल रहा है उसका नमूना भर है। जाहिर है कि इस सबका प्रभाव नकारात्मक ही होगा। इससे समाज में पहले से व्याप्त नफरत और बढ़ेगी और मूल मुद्दे - अर्थात महिलाओं के खिलाफ हिंसा, विशेषकर अंतरजातीय और अंतर्धार्मिक संबंधों में – से ध्यान भटकेगा।
'लव जिहाद' शब्द से आशय है धर्मपरिवर्तन की साजिश, जिसका उद्देश्य इस्लामिक आतंकी समूहों में युवाओं की भर्ती करवाना, सेक्स ट्रैफिकिंग और भारत के जनसांख्यिकीय चरित्र को बदलना है।
लव जिहाद शब्द को सांप्रदायिक ताकतों ने गढ़ा और उन्हीं ने इसे समाज के विभिन्न तबकों में लोकप्रिय बनाया। इस शब्द की संकल्पना में यह निहित है कि महिलाएं और लड़कियां अपने निर्णय स्वयं नहीं ले सकतीं। यह संकल्पना, धार्मिक राष्ट्रवाद की पितृसत्तात्मक विचारधारा का हिस्सा है। अब हिंदुत्ववादी राजनीति के पैरोकार मंत्री और नेता 'हिन्दू लड़कियों की सुरक्षा' के लिए नए कानूनों की बात कर रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उच्चतम न्यायालय के जज तक सरकार को यह निर्देश दे रहे हैं कि वह धर्मपरिवर्तन रोकने के लिए कुछ करे।
हादिया का मामला
लव जिहाद के हौव्वे की शुरुआत कुछ साल पहले केरल से हुई थी। प्रचार यह किया गया कि इसका उद्देश्य गैर-मुस्लिम महिलाओं को मुसलमान बनाना और उनका इस्तेमाल सीरिया, अफ़ग़ानिस्तान आदि में आतंकी संगठनों के सदस्यों के लिए 'सेक्स स्लेव' के रूप में करना है। हांदिया (पूर्व नाम अकीला अशोकन) द्वारा इस्लाम स्वीकार कर शफीक जहान से शादी करने के मामले में चली लम्बी कानूनी लड़ाई ने इस दुष्प्रचार की हवा निकाल दी।
ऐसा बताया गया था कि हादिया लव जिहाद की शिकार है और उसे आईएसआईएस में भर्ती किया जायेगा। परन्तु हादिया ने निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में साफ़-साफ़ कहा कि उसने अपने जीवनसाथी और अपने नए धर्म का चुनाव अपनी मर्ज़ी से किया है। सुप्रीम कोर्ट ने सन 2018 में हादिया के अपने धर्म से बाहर शादी करने के अधिकार को वैध ठहराया। इसी तरह का दुष्प्रचार देश के अन्य क्षेत्रों में भी किया गया और किया जा रहा है।
पिछले कुछ महीनों में कर्नाटक, असम, हरियाणा और गुजरात – जहाँ भाजपा या भाजपा ने नेतृत्व वाले गठबंधन सत्ता में हैं - के मुख्यमंत्रियों ने लव जिहाद से निपटने के लिए कानून बनाने की बात कही है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में पहले से ही ऐसे कानून हैं जो विवाह हेतु धर्मपरिवर्तन को अपराध घोषित करते हैं।
भाजपा के कई नेता आफताब-श्रद्धा मामले को लव जिहाद से जोड़ रहे हैं। हाल में रिलीज़ हुई फिल्म "केरला स्टोरीज" ने तो सारी हदें पार कर लें हैं। फिल्म में यह दावा किया गया है कि केरल की 32,000 युवतियों को मुसलमान बनाकर सीरिया, यमन इत्यादि ले जाया गया है! यह आंकड़ा पूरी तरह से अविश्वसनीय स्त्रोतों पर आधारित है और ऐसा लगता है कि फिल्म निर्माता ने तार्किकता को तिलांजलि दे दी है।
आज ज़रुरत इस बात की है कि हम लव जिहाद के दुष्प्रचार, जो देश की फिजा में ज़हर घोल रहा है, का मुकाबला करें। आज ज़रुरत इस बात की है कि वैवाहिक और प्रेम संबंधों में दुःख भोग रही लड़कियों और महिलाओं को हेल्पलाइन और अन्य प्रकार की सहायता उपलब्ध हो। हमें यह समझना होगा कि इस तरह की समस्याओं से निपटने के लिए हमें उन्हें साम्प्रदायिकता के रंग में रंगने से कुछ हासिल नहीं होगा।
(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया;)
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