आर्य लोगों को हिंदुओं का पूर्वज माना जाता है। आर्य लोग इस भूमि के प्राचीन निवासी थे और हड़प्पा और मोहन-जो-दड़ो सभ्यताएं आर्य सभ्यता का ही हिस्सा थीं, ऐसा पाठ कुछ समय से बहुत मजबूती से पढ़ाया जाता रहा है।
इतिहास के इस ‘हिंदू पहले’ संस्करण पर मुहर लगाने के लिए मोदी सरकार ने एक समिति नियुक्त की है। इसका उद्देश्य ऐसी रिपोर्ट तैयार करना है, जो शालेय पुस्तकों के पाठ्यक्रम का आधार बन सके। सरकारी दस्तावेजों में इस समिति को ‘12000 वर्षों पहले भारतीय सभ्यता के उद्गम और उत्क्रांति का समग्र अध्ययन और विश्व की अन्य सभ्यताओं के साथ उसका समागम’ का नाम दिया गया है। सांस्कृतिक मंत्री महेश शर्मा ने इस समिति की घोषणा करते हुए कहा कि आम प्रचलित सोच है कि मध्य एशिया से लोग भारत में कुछ 4000 वर्ष पहले ही आए हैं, इस सोच विचार पर सवाल उठाने की जरूरत है। इस समिति में अध्ययन का जो प्रमुख केंद्र है, वह पहलू है, आर्यों का उद्भव और प्राचीन भारतीय इतिहास का अध्ययन।
आर्यों का मूल
आर्य लोग कहां से आए थे? क्या वे इस भूमि के निवासी थे या वे कहीं और से आए थे? क्या हड़प्पा सभ्यता भी आर्य सभ्यता का हिस्सा थी? आर्यों के मूल के बारे में बहुत विस्तृत चर्चा होती रही है। मोटे तौर पर इस संबंध में तीन मत हैं। पहला मत है कि आर्य लोग इस क्षेत्र के मूल निवासी थे। दूसरा मत है कि वे आर्कटिक क्षेत्र से आए थे और भारत पर आक्रमण किया था। तीसरा मत कहता है कि आर्य लोग यूरेशिया से स्थानांतरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत आए थे।
इनमें से एक ‘आर्यों के आक्रमण’ थियोरी है, जिसके अनुसार आक्रमणकारी आर्यों ने इस क्षेत्र के स्थानीय निवासियों को श्रेणीबद्ध समाज के कृषकों और गुलामों के तौर पर अपने वश में किया। यह माना गया है कि “द्विज जातियाँ” यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य मूल आर्य विजेताओं के वंशज हैं और शूद्र, अति-शुद्र तथा जन जतियों के लोग अनार्य स्थानीय निवासियों के वंशज हैं।
यह नस्लीय सिद्धांत हिंदुत्व के विचारकों द्वारा स्वीकार किया गया, पर उसे एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया गया। आर्य आक्रमणकारी थे, यह स्वीकार करने का मतलब है, उनकी तुलना अन्य आक्रमणकारियों के साथ करना, जिनमें मुख्य रूप से मुस्लिम थे।
हिंदुत्व राजनीति के केंद्र में गैर-हिंदू, विशेष रूप से मुस्लिमों के प्रति नफरत की भावना के कारण यह स्वीकृत नहीं किया गया। इसलिए हिंदुत्व के विचारक तर्क देते हैं कि आर्य लोग ही इस भूमि के मूल निवासी थे और भारत से ही वे अन्य प्रदेशों में गये।
आर्यों का उपमहाद्वीप में उद्भव हिंदुत्व की राजनीति का केंद्रीय विचार है। परिणामस्वरूप हिंदुत्व के विचारक इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने में अपने प्रयासों में जमकर लगे हुए हैं। इसमें नये ऐतिहासिक संशोधनों को विकृत कर अपनी धारणा के अनुसार बनाना शामिल है। उदाहरण के लिए, वे दावा करते हैं कि हड़प्पा और मोहन-जो-दड़ो सभ्यताएँ भी आर्य सभ्यता है। इस प्रक्रिया में वे ऐतिहासिक रूप से स्वीकार्य घटनाओं की शृंखला को भी पलटते हैं और कहते हैं कि ऋग्वेद का युग 3700 ईसा पूर्व समाप्त हो गया था। इस प्रकार सिंधु सभ्यता का युग भी पहले घटित हुआ बताते हैं।
क्या “आर्य” एक नस्ल है?
भाषा विज्ञान और पुरातत्व के संशोधक सिद्ध करते हैं कि एक आकस्मिक आक्रमण नहीं हुआ था, बल्कि कई पीढ़ियों तक धीमा स्थानांतरण हुआ। ‘स्थानांतरण का सिद्धांत आंशिक तौर से ऐतिहासिक भाषा विज्ञान से पैदा हुआ।
उपमहाद्वीप में आर्यों के उगम की सोच के मुख्य स्त्रोत की पुनरावृत्ति भारतीय आर्य भाषाओं के अध्ययन में हुई है और वर्तमान प्रमुख सोच यह है कि लगातार स्थानांतरण से आर्य लोग यहां आए होंगे। सिंधु घाटी के अवशेष, हड़प्पा और मोहन-जो-दड़ो सभ्यताएँ दर्शाती हैं कि वहाँ शहरी सभ्यता थी। आर्यों को समझने का मुख्य स्त्रोत ‘वेद’ सिंधु घाटी की सभ्यता के विरुद्ध खानाबदोश ग्रामीण जीवन को प्रतिबिंबिंत करता है।आर्यों का चिन्ह अश्व-मुद्रा इस क्षेत्र में उसका आर्यमूल दर्शाने के लिए मनगढंत बनाया गया है। वैसे सिंधु घाटी सभ्यता में अश्व-मुद्रा बहुत सवालिया निशान छोड़ती है।
कई अनुवांशिक अध्ययनों से पता चला है पश्चिमी क्षेत्रों से लोगों का स्थानांतरण हुआ था। अलगाववादी राष्ट्रवाद हमेशा चाहता है इतिहास को जितना हो सके पीछे तक घसीटा जाए ताकि इस भूमि पर उनके पूरे-पूरे एकाधिकार को मजबूत बताया जा सके। पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों को हाशिए पर रखना इसी सोच के समांतर है कि मोहम्मद बिन कासिम ने सिंधु को जीता तब से पाकिस्तान की रचना हुई। इसी तरह पाकिस्तान में तक्षशिला के विकास की बात को पूरी तरह से खारिज किया गया है। तक्षशिला में बौद्ध और हिंदू संस्कृतियों का काफी विकास हुआ था।
पाकिस्तान के पाठ्यक्रमों से सभी हिंदू राजा नदारद हैं, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, गांधी और नेहरू की भूमिका भी गायब है। यहाँ भारत में हिंदू राष्ट्रवादी लोग सावरकर द्वारा रचित राजनीतिक कथन से शुरू करते हैं कि इस भूमि को ‘पवित्र भूमि और पितृ भूमि’ मानने वाले सभी हिंदू हैं। इसलिए, इस सच्चाई के विपरीत कि हिंदू शब्द ही बहुत बाद में अस्तित्व में आया, तार्किक रूप से प्राचीन वंश हिंदुओं से शुरू होना चाहिए।
शैक्षणिक रुचि के लिए बता दें कि आनुवंशिक अध्ययन दर्शाते हैं कि मानव जाति का उद्भव दक्षिण अफ्रीका से शुरू हुआ, जहां से वह पूरी दुनिया में फैली। इससे यूरेशियन मूल का सिद्धांत खारिज हो जाता है। अलगाववादी राष्ट्रवादियों द्वारा समर्थित हिंदू राष्ट्रवादी दृष्टिकोण के अनुसार ‘हिंदू पहले’ यह शुरुआती अनुमान है। यह समझनेवाली बात है कि सभी निरीक्षण-परिणाम इस आदेश द्वारा संचालित होंगे। वर्तमान राजनीतिक उद्देश्यों के लिए ‘अतीत की रचना’, हिंदू राष्ट्रवाद के अनुसार अतीत की रचना के उद्देश्य के अनुरूप है।
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