छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुए 350 वर्ष पूरा होने जा रहा है। 6 जून 1674 को उनका राज्याभिषेक हुआ था। इसको लेकर महाराष्ट्र के रायगढ़ किले में 350वीं वर्षगांठ समारोह भव्य रूप में मनाया जा रहा। महाराष्ट्र सरकार ने इस अवसर पर 1 से 7 जून तक विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया है।
महान मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगांठ पर आज भले ही भव्य समारोह हो रहे हैं लेकिन कभी जाति के कारण उन्हें भी भेदभाव का सामना करना पड़ा था।
कुल को लेकर संशय होने पर राजगढ़ व अन्य राज्यों के ब्राह्मणों ने उनका राज्याभिषेक करने से मना कर दिया था। तब बनारस के ब्राह्मणों को बुलाया गया था और उन्होंने शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया था।
स्थानीय ब्राह्मणों के इंकार के बाद बनारस के पंडित गंग भट राज्याभिषेक के लिए आगे आए। जाति व्यवस्था की परवाह न करते हुए उन्होंने न केवल राज्याभिषेक किया, बल्कि देश-दुनिया को काशी की पांडित्य परंपरा का दर्शन भी कराया।
1674 में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले छात्रपति शिवाजी महाराज जाति से कुर्मी थे। माना जाता है कि इसी कारण स्थानीय ब्राह्मणों ने राज्याभिषेक करने से इंकार कर दिया था।
भवन सिंह राणा की किताब छत्रपति शिवाजी में उनके उनका राज्याभिषेक से जुड़े प्रसंगों की चर्चा की गई है। अपनी किताब में भवन सिंह लिखते हैं कि 1674 से पहले शिवाजी सिर्फ एक स्वतंत्र शासक थे। उनका राज्याभिषेक नहीं हुआ था और आधिकारिक तौर पर वह साम्राज्य के शासक नहीं थे। छत्रपति शिवाजी ने कई लड़ाइयां जीतीं थीं लेकिन तब तक बतौर राजा उन्हें स्वीकार नहीं किया गया था।
बाद के दिनों में उन्हें एहसास हुआ कि अगर शासक बनना है तो जोर-शोर से राज्याभिषेक होना बेहद ज़रूरी है। लेकिन यहां समस्या यह थी कि उस दौर में कई मराठा सामंत ऐसे थे, जो शिवाजी को राजा मानने को तैयार नहीं थे। इन चुनौतियों पर काबू पाने के लिए उन्होंने अपने राज्याभिषेक का फैसला लिया।
शिवाजी ने गद्दी संभालने की तैयारी 1673 से ही शुरू कर दीं थीं लेकिन राज्याभिषेक से पूर्व उनके सामने एक बड़ी समस्या तब खड़ी हुई जब उस दौर के रूढ़िवादी ब्राह्मणों ने शिवाजी को राजा मानने से ही इंकार कर दिया। उनके मुताबिक क्षत्रिय जाति से ही कोई राजा बन सकता है। उनका कहना था कि शिवाजी क्षत्रिय नहीं हैं इसलिए उनका राज्याभिषेक नहीं हो सकता है।
इतिहासकारों के मुताबिक पंडित गंग भट्ट ने मराठावाड़ के ब्राह्मणों को मनाया और शिवाजी के राज्याभिषेक की तैयारियां शुरू करवाईं। इस समारोह में कई मशहूर शख्सियतें शामिल होने के लिए रायगढ़ पहुंची। इसके लिए देश के बड़े-बड़े पंडितों को बुलावा दिया गया।
मान्यता है कि राज्याभिषेक समारोह में 50 हज़ार से ज़्यादा लोग शामिल हुए थे। राज्याभिषेक में शामिल हुए लोगों ने 4 महीने, शिवाजी की मेहमान नवाज़ी में गुज़ारे। पंडित गंग भट्ट को लाने के लिए विशेष दूत काशी भेजे गये थे।
जो स्थानीय ब्राह्मण राज्याभिषेक का विरोध कर रहे थे वे भी पंडित गंग भट्ट के तर्कों से सहमत हुए और इसके बाद धूमधाम से शिवाजी के राज्याभिषेक की तैयारियां शुरू हुईं।
शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक पूरी तरह वैदिक रीति-रिवाज़ों से हुआ। उन्होंने इसमें शामिल हुए सभी पंडितों और मेहमानों को उपहार भी दिए थे। मंत्रोचारण कर उन्हें राजा की वेशभूषा पहनाई गई। इस अवसर पर छत्रपति शिवाजी के अलावा उनके 8 अन्य मंत्रियों ने भी अपनी उपाधि ग्रहण की थी। इसके बाद हाथियों को सजा कर भव्य मार्च निकाला गया। शिवाजी उनमें से एक हाथी पर बैठकर रायगड़ की सड़कों पर निकले जहां उनका भव्य स्वागत किया गया।
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