तंत्र अपने सभी गलत काम संविधान को ढाल बनाकर ही करता है। पहले संविधान को संशोधित कर उसे मन-मुताबिक़ बनाता है, फिर उसी संविधान की दुहाई देकर अनाप-शनाप क़ानून जनता पर ठोक देता है।
तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करने वालों को मोदी सरकार के समर्थकों ने खालिस्तानी, नक्सली, देशद्रोही क्यों कहा था? जानिए, अब इन क़ानूनों की वापसी के क्या हैं मायने।
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद अब आधिकारिक तौर पर सत्ता में तालिबान ही है। चीन, रूस जैसे देशों के अलावा पश्चिमी देश भी तालिबान को कट्टर इसलामिक पद्धति मानकर आगे बढ़ रहे हैं। भारत को क्या रुख अपनाना चाहिए?
कोरोना वायरस की मारक दूसरी लहर झेलने के बाद आज भारत के लोग तीसरी लहर की उल्टी गिनती कर रहे हैं। ये तीसरी लहर कब और कितनी बड़ी आएगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम वायरस-वैक्सीन-व्यवस्था के त्रिकोण को कितने अच्छे से समझ पाते हैं।
कोर्ट के पास मौक़ा है कि वह आस्था बनाम दस्तावेज के बीच से एक को चुनकर ध्रुवीकरण का रास्ता खोले या क़ानून की एक ऐसी परिभाषा दे जिससे विज्ञान एवं धर्म के बीच समन्वय का मार्ग बने।
वर्तमान चुनाव में एक तरफ़ बीजेपी है, जो राजनीतिक दल कम, संघ परिवार का चुनावी चेहरा अधिक है, तो दूसरी तरफ़ विपक्ष है, जो मात्र गणितीय आधार पर बीजेपी को हराने की जुगत में है।
जातीयता, साम्प्रदायिकता, राष्ट्रीयता, ग़रीबी, बेरोज़गारी आदि मुद्दों के बीच कौन जीतकर निकलेगा, यह बेगूसराय के लिए ही नहीं पूरे भारत के वैचारिक विमर्श का दिशा सूचक होगा।
एक बार फिर उग्रवाद ने कश्मीर को लपेट लिया। जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग पर सीआरपीएफ़ की टुकड़ी पर आत्मघाती हमले ने फिर से साबित कर दिया कि भारत आतंकवादियों के लिए सॉफ़्ट टार्गेट है।
2019 के चुनावों का विमर्श किसान-नौजवान के वोट की दृष्टि से होगा क्योंकि यही वर्ग वर्तमान में किसी ख़ेमे का स्थापित वोट बैंक नहीं है। लेकिन बीजेपी लामबंदी करेगी धार्मिक ध्रुवीकरण के आधार पर एवं विपक्ष करेगा जातीय आधार पर, क्यों?