मनुष्य जब अक्षम होता है तब उसे किसी सक्षम व्यक्ति से सेवा की ज़रूरत होती है और सक्षम मनुष्य अक्सर सबको उपदेश देते हुए पाया जाता है। दिल्ली विधानसभा का चुनावी दंगल सेवक और उपदेशक का दंगल था। दिल्ली के 30-40% सक्षम लोगों का प्रतिनिधित्व बीजेपी कर रही थी। बीजेपी का उपदेश राष्ट्रवाद के लिबास में था जिसके अंदर धर्म, संस्कृति, परंपरा आदि निहित थे। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी (आप) सेवा का जामा पहनी हुई थी जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी की सुविधाएं शामिल थीं।
दिल्ली: केजरीवाल का काम जीतेगा या बीजेपी का धार्मिक ध्रुवीकरण का अस्त्र
- दिल्ली
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- 10 Feb, 2020

दिल्ली के विधानसभा चुनाव में बीजेपी उपदेश दे रही थी तो आम आदमी पार्टी सेवक के रूप में अपनी सरकार के 5 साल के कामकाज को गिना रही थी।
एक राजनीतिक दल वोटर के सामने विचार परोस रहा था तो दूसरा व्यावहारिकता। दिल्ली को नजदीक से देखने वाले जानते हैं कि यहां दो हिंदुस्तां बसे हैं। एक इंडिया है और दूसरा भारत। एक लुटियन्स वाला है तो दूसरा रेहड़ी-पटरी वाला। इंडियन दिल्ली में रहने वाले 30-40% लोग पीढ़ियों से दिल्ली में रहते आए हैं तथा संभ्रांत हैं अर्थात सक्षम हैं। जबकि भारतीय दिल्ली में 60-70% प्रवासी आबादी पिछले दो-तीन दशक में बसी है और धीरे-धीरे सामाजिक, आर्थिक स्थायित्व को प्राप्त करने का प्रयास कर रही है। ऐसे लोग तुलनात्मक दृष्टि में थोड़े अक्षम हैं।