साहित्य किसी मौलिक विचार की कलात्मक अभिव्यक्ति होती है और मीडिया किसी विषय को व्यापक रूप देता है। साहित्य विचार प्रधान होता है और मीडिया विषय प्रधान। साहित्य व्यापक न भी हो तो साहित्य ही रहता है, जैसे कालिदास का रघुवंश ज्यादा लोग न भी पढ़े हों, तो भी वो साहित्य ही रहेगा, पर यदि कोई अखबार 50 लोग भी न पढ़ें तो वो मीडिया नहीं माना जाएगा। मीडिया में विचार की गुणवत्ता कम और विषय को गणना में अधिक लोगों तक पहुंचाना महत्वपूर्ण होता है, साहित्य में किसी मौलिक विचार को सार्वजनिक भर कर देना पर्याप्त होता है। साधारण भाषा में कहें तो मीडिया = प्रचार का तंत्र, और साहित्य = विचार का मंत्र।
मीडिया: AI सहयोगी होगा या विध्वंसक? जानें यह कितना सेफ़
- मीडिया
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- 29 Mar, 2025

अमेरिकी चुनाव में वाशिंगटन पोस्ट से लेकर लॉस एंजिलिस टाइम्स जैसे प्रतिष्ठित अखबारों की भविष्यवाणी गलत सिद्ध हो गई और एलोन मस्क के ट्विटर पर कुछ सौ लोगों के हैशटैग को AI ने इतना अधिक प्रचारित कर दिया कि जनता ने किसी और को ही जिता दिया।
प्राचीन भारत की परंपरा हो या वर्तमान एडवान्स्ड साइंस की विधा हो, दोनों में विचार के आधार पर ही निष्कर्ष पर पहुंचना अनिवार्य रहा। परन्तु वर्तमान में भारत हो या विश्व भर की मास साइकोलॉजी, दोनों में आज प्रचार के आधार पर ही निष्कर्ष निर्माण किये जा रहे हैं। कारण है कि साहित्य की मौलिकता थोड़ी कठिन होती है, समझने में जटिल होती है, इसीलिए विचारों की व्यापक पहुँच कम होती है। विषय आसान होते हैं, रोज नए होते हैं, इसीलिए मीडिया का प्रचार बहुत व्यापक होता है।