साहित्य किसी मौलिक विचार की कलात्मक अभिव्यक्ति होती है और मीडिया किसी विषय को व्यापक रूप देता है। साहित्य विचार प्रधान होता है और मीडिया विषय प्रधान। साहित्य व्यापक न भी हो तो साहित्य ही रहता है, जैसे कालिदास का रघुवंश ज्यादा लोग न भी पढ़े हों, तो भी वो साहित्य ही रहेगा, पर यदि कोई अखबार 50 लोग भी न पढ़ें तो वो मीडिया नहीं माना जाएगा। मीडिया में विचार की गुणवत्ता कम और विषय को गणना में अधिक लोगों तक पहुंचाना महत्वपूर्ण होता है, साहित्य में किसी मौलिक विचार को सार्वजनिक भर कर देना पर्याप्त होता है। साधारण भाषा में कहें तो मीडिया = प्रचार का तंत्र, और साहित्य = विचार का मंत्र।