ऐसा नहीं है कि डॉ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते सब कुछ ठीकठाक था लेकिन वह मीडिया की परवाह करते थे और उनकी सरकार आलोचनात्मक रिपोर्टिंग का संज्ञान लेकर कदम उठाती थी। उनके दौर में कई मंत्रियों के (ए राजा, पवन बंसल, अश्विनी कुमार) इस्तीफे लिये। कुछ को (शशि थरूर) उनके बड़बोलेपन की सज़ा भुगतनी पड़ी। और मीडिया खुलकर सरकार के खिलाफ कैंपेन चला सकता था। चाहे आरटीआई कानून में बदलाव के खिलाफ या 2-जी और कोयला खदानों की नीलामी को लेकर उठे सवालों पर। सीएजी रिपोर्ट आलोचनात्मक होती तो कई दिनों तक टीवी और अख़बारों में बैनर हेडलाइन चलती। संसद में हंगामा होता तो विपक्ष की आवाज़ को प्रमुखता मिलती।