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मनमोहन सिंह की बात न मानने की सजा भुगत रहा है देश

डा.मनमोहन सिंह ने समय रहते देश को चेता दिया था कि नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना देश के लिए 'डिज़ास्टर' यानी विनाशकारी साबित होगा। देश ने सुना नहीं और भुगत रहा है।
मनमोहन सिंह का काल आज दूर देश की कथा लगता है। उनके समय आरोप लगते ही मंत्रियों का इस्तीफ़ा हो जाता था और आंदोलनकारी राष्ट्रपति भवन तक पहुँच सकते थे। लोकतंत्र और आज़ादी का मतलब हर चौराहे पर महसूस किया जा सकता था। प्रधानमंत्री पत्रकारों के कठिन से कठिन सवालों का जवाब देते थे और सरकार के ख़िलाफ़ चोबीस घंटे ख़बर चलाने का कोई दंड नहीं था।
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मनमोहन सिंह का बचपन जिस ग़रीबी में गुज़रा उसके सामने कोई चायवाला करोड़पति ही लगेगा लेकिन उन्हो़ने इसका ज़िक्र करके न सहानुभूति बटोरी न वोट‌‌। तब भी सफ़ाई नहीं दी जब लोकपाल के नाम पर बवाल खड़ा करने वाले नौटंकीबाज़ों ने सर्वाधिक भ्रष्ट प्रधानमंत्री बताते हुए जंतर-म़तर पर उनकी तस्वीर लगा दी थी।  आज सब देख रहे हैं कि पंजाब में सर्वशक्तिशाली सरकार बनाने के बावजूद भूलकर भी लोकपाल का नाम नहीं लिया जाता और ईमानदारी के अवतार कहे जाने वाले केजरीवाल अपने आवास को 52 करोड़ का शीशमहल बनाने की तोहमत झेल रहे हैं। 
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की व्यक्तिगत ईमानदारी पर आलोचक भी सवाल नहीं उठाते लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी शैली के अनुरूप उनके ख़िलाफ़ भी झूठ बोलने में कोताही नहीं की‌। उन पर 'रेनकोट पहनकर नहाने' का जुमला रगड़कर भ्रष्ट बताया और लगातार यह झूठ बोला कि मनमोहन  सिंह ने देश के संसाधनों  पर पहला हक़ मुसलमानों  का बताया था। जबकि उन्होंने दलितों  और अन्य वंचित समुदायों के साथ अल्पसंख्यकों का पहला हक़ बताया था! मोदी ने एक प्रधानमंत्री की ओर से समावेशी विकास के आश्वासन को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण  का जरिया बना दिया।
मनमोहन सिंह की अपनी गाड़ी मारुति 800 थी जो भारतीय मध्यवर्ग के विकास का पहला प्रतीक थी। वे  मध्यवर्ग की दुश्वारियों को अच्छी तरह समझते थे और उनकी नीतियों ने भारत में मध्यवर्ग के विकास में अहम भूमिका निभाई जो आर्थिक तरक्की का आधार बना। सस्ते लोन की नीति से लाभान्वित भारतीय मध्यवर्ग की पहचान स्कूटर की जगह कार और फ्लैट से होने लगी।  यह अलग बात है कि इस मध्यवर्ग ने उनके प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखाई और उन्हें भ्रष्ट बताने वालों की राजनीतिक ताक़त बन गया।
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मनमोहन सिंह ने बतौर वित्तमंत्री  उदारीकरण की शुरुआत करके देश को एक बड़े आर्थिक संकट से उबारा था और प्रधानमंत्री बनकर इसके फल को आबादी के बड़े हिस्से तक पहुँचाया। यूपीए के दौर में विकास के मानवीय चेहरे पर ज़ोर दिया गया और सूचना, भोजन और रोज़गार जैसे अधिकारों को ज़रिए लोकतंत्र कै समृद्ध और नागरिक को सशक्त बनाने के ऐतिहासिक क़दम उठाये गये। उन्होंने यहाँ तक कहा था कि आर्थिक  समृद्धि का लाभ सभी तक पहुँचाने के लिए निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने पर विचार  किया जाएगा। लेकिन अपने सामने ही इन नीतियों की सीमाएँ उजागर होते भी देखा जब मोदी सरकार ने उन्हीं का हवाला देते हुए  क्रोनी-कैपिटलिज़्म के एकाधिकारवादी रवैये से अर्थव्यवस्था को जकड़ दिया।

मनमोहन सिंह कम बोलते थे पर इतिहास में उनका काम हमेशा बोलेगा। उन्होंने जब विश्वास जताया था कि इतिहास उनके प्रति न्याय ज़रूर करेगा तो जानते थे कि झूड, फ़रेब और विज्ञापनों के बल पर वर्तमान को भ्रमित किया जा सकता है, इतिहास को नहीं।

अलविदा मनमोहन सिंह जी!
(वरिष्ठ पत्रकार पंकज श्रीवास्तव के फेसबुक पेज से साभार)
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क़मर वहीद नक़वी
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