स्थापित सत्य है कि व्यवस्था निर्माण में अच्छी नीयत से अधिक सही नीति की आवश्यकता होती है। यह भी निर्विवाद है कि जहां लोकतंत्र में सत्ता = सेवा का मौका माना जाता है, वहीं अधिनायकवाद में सत्ता = सर्वज्ञता का पर्याय होता है। किसानों के लिए बनाए कानून में भारत सरकार इन दोनों यथार्थों से मुंह मोड़ गई।