मुख्यमंत्री और टीएमसी की स्टार प्रचारक ममता बनर्जी को चुनाव आयोग ने नोटिस भेजा है। ममता पर धर्म के आधार पर वोट मांगने, नफ़रत फैलाने समेत कई आरोप हैं। इन आरोपों का आधार 3 अप्रैल को ममता बनर्जी की ओर से हुगली के तारकेश्वर की रैली में दिया गया वह भाषण है जिसमें उन्होंने धर्म के आधार पर वोटरों को एकजुट होने की अपील की थी।
ममता के इसी भाषण को आधार बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कूच विहार की रैली में हिन्दुओं को एकजुट करने की अपील की थी, मगर उनका अंदाज़-ए-बयाँ कुछ अलग था। पीएम मोदी ने कहा था कि अगर वे कहेंगे कि ‘हिन्दुओं एक हो जाओ’ तो उनके पास चुनाव आयोग के 8 से 10 नोटिस आ जाएँगे। सवाल यह है कि चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को नोटिस भेजा, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्या बख्श दिया है?
क्या है ममता को नोटिस का क़ानूनी आधार?
चुनाव आयोग ने ममता बनर्जी को दिनांक 7 अप्रैल को भेजे गये नोटिस 437/WB-LA/2021 में जनप्रतिनिधित्व क़ानून 1951 के अनुच्छेद 123 (3ए) और 26 अप्रैल को जारी मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट का हवाला दिया है और ममता पर इनके उल्लंघन के आरोप लगाए हैं। जनप्रतिनिधित्व क़ानून के तहत यह नोटिस किसी उम्मीदवार को तब दिया जाता है जब ऐसा लगता है कि उसने धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर देश के नागरिकों को बाँटने, नफ़रत या वैमनस्य फैलाने का प्रयास किया है।
ममता को भेजे गये इस नोटिस में मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट पार्ट वन में जिन क्लाउज 2, 3 और 4 का ज़िक्र है उनमें निजी आलोचना, तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने, आधारहीन आरोप लगाने से रोकने की व्यवस्था है। साथ ही, वोट के लिए सांप्रदायिक या जातिगत भावनाएँ पैदा करना और चुनाव अभियान में मंदिर, मसजिद, चर्च या दूसरे धार्मिक स्थानों का इस्तेमाल करना प्रतिबंधित है। इसके अलावा भ्रष्ट आचरण, वोटरों को धमकाना, लुभाना, मतदान स्थल से 100 मीटर के दायरे में चुनाव प्रचार, मतदान ख़त्म होने के 48 घंटे के भीतर प्रचार करने की अपेक्षा भी की जाती है।
ममता ने ‘अल्पसंख्यक’ कहा, ‘मुसलमान’ नहीं
‘मैं अपने अल्पसंख्यक भाइयों और बहनों से दोनों हाथ जोड़कर आग्रह करती हूँ कि उस शैतान की बातों में आकर जिसने बीजेपी से रक़म ली थी, अल्पसंख्यक वोटों को बंटने नहीं दें। उसने कई सांप्रदायिक बयान दिए हैं और हिन्दू-मुसलमानों को लड़ाया है। वह बीजेपी से प्रेरित लोगों में है और उसका साथी है। सीपीएम और बीजेपी के साथी बीजेपी से पैसे लेकर घूम रहे हैं और अल्पसंख्यक वोटों को बाँट रहे हैं।’
रिपोर्ट के इस हिस्से को देखकर यह साफ़ पता चलता है कि ममता बनर्जी ने ‘अल्पसंख्यक भाइयों और बहनों’ से विनती की थी न कि मुसलमानों से।
वह बिना नाम लिए फुरफुरा के पीरजादा पर सांप्रदायिक बयान देने और बीजेपी के इशारे पर पैसे लेकर घूमने के साथ-साथ अल्पसंख्यक वोटों के बाँटने का आरोप लगा रही हैं।
ममता ने ‘हिन्दू भाइयों और बहनों’ से भी की थी अपील
हालाँकि मुख्य निर्वाचन अधिकारी की इसी रिपोर्ट में ममता बनर्जी ने हिन्दू वोटों के लिए भी बहुत कुछ ऐसा ही कहा है लेकिन चुनाव आयोग ने इसे मोटे काले अक्षरों में नहीं लिखा है। गौर करें,
‘....मैं अपने हिन्दू भाइयों और बहनों से भी कहना चाहूँगी कि बीजेपी की बातों में आकर अपने आपको हिन्दू और मुसलिम में बँटने नहीं दें।....’
चुनाव आयोग ने चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के चुनाव मंच से कलमा पढ़ने या चंडीपाठ करने पर अब तक नोटिस जारी नहीं किया है। क्या इसका आधार यह है कि कोई शिकायत नहीं की गयी? यह प्रश्न इसलिए ज़रूरी है क्योंकि ममता को जारी नोटिस में चुनाव आयोग ने यह जताने की कोशिश की है कि शिकायत और पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर वह यह नोटिस जारी कर रहा है। अगर वास्तव में भेदभावरहित निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव आयोग गंभीर है तो उसे किसी की शिकायत का इंतज़ार नहीं होना चाहिए। यह उसकी ज़िम्मेदारी है कि हर तरह के कदाचार को चुनाव के दौरान रोके।
प्रधानमंत्री मोदी को क्यों नहीं नोटिस?
सवाल यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनाव आयोग ने अब तक नोटिस क्यों नहीं भेजा है? पीएम मोदी ने कूच विहार में बीजेपी के स्थापना दिवस पर हुई चुनाव रैली को संबोधित करते हुए ममता के उसी भाषण का ज़िक्र किया था जिसके लिए ममता को नोटिस भेजा गया है। ऐसा करते हुए पीएम मोदी ने खुलेआम ममता बनर्जी को मुसलिम वोटों का आकांक्षी और इस मक़सद में असफल क़रार दिया था। यह बयान भी चुनाव में धर्म के इस्तेमाल का है। इतना ही नहीं, पीएम मोदी ने प्रकारांतर से अपील की थी कि ‘हिन्दुओं एक हो जाओ’। उस अपील की भाषा पर ग़ौर करें-
'दीदी, आप वैसे तो चुनाव आयोग को गालियाँ देती हैं, लेकिन हमने ये कहा होता कि सारे हिंदू एकजुट हो जाओ, बीजेपी को वोट दो, तो हमें इलेक्शन कमीशन के 8-10 नोटिस मिल गए होते। सारे देश के एडिटोरियल हमारे ख़िलाफ़ हो गए होते।'
पीएम मोदी का वक्तव्य बिल्कुल साफ़ है और इसे बगैर किसी शिकायत के भी चुनाव आयोग को संज्ञान में लेना चाहिए।
एक पक्ष पर कार्रवाई क्यों?
पश्चिम बंगाल के चुनाव में जिस तरीक़े से धर्म के नाम पर वोटरों को लुभाने, बाँटने, धमकाने के उदाहरण देखने को मिल रहे हैं उससे सवाल चुनाव आयोग पर ही खड़े होते हैं। केवल एक पक्ष को नोटिस भेजने या कार्रवाई करने से चुनाव निष्पक्ष नहीं हो सकता। बीजेपी के चुनाव मंचों से लगातार ‘जय श्री राम’ के नारे उछाले जा रहे हैं। इस पर रोक के लिए अब तक चुनाव आयोग ने कोई क़दम नहीं उठाया है। साथ ही शुभेंदू अधिकारी के पूरे चुनाव प्रचार का कोई संज्ञान आयोग ने नहीं लिया है जो ख़ालिस आपत्तिजनक और सांप्रदायिक था।
दूसरे चरण के चुनाव के दौरान ममता बनर्जी ने 63 शिकायतें चुनाव आयोग को भेजी थीं, लेकिन ममता का दावा है कि किसी पर भी आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की। टीएमसी नेता मोइन मित्रा ने तो वीडियो जारी कर बीजेपी नेता के ख़िलाफ़ भ्रष्ट आचरण की शिकायत चुनाव आयोग को भेजी थी और वह ममता को नोटिस के बाद अपनी उस शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं होने का आरोप दोहरा रही हैं।
असम में बीजेपी नेता हिमंत बिस्व सरमा को दोषी ठहराने और चुनाव प्रचार से रोकने की घोषणा के तुरंत बाद सज़ा को आधी कर देना भी चुनाव आयोग पर सवाल खड़े करता है। चुनाव आयोग को न सिर्फ़ दलगत पक्षपात या पूर्वाग्रह से ऊपर उठकर काम करना होगा, बल्कि निष्पक्ष तरीक़े से काम करता हुआ दिखना भी होगा। यह लोकतंत्र के महापर्व की पवित्रता के लिए बेहद ज़रूरी है।
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