इतवार को टेलीग्राफ़ अख़बार में छपे मुकुल केसवन के लेख में इंग्लैंड या ग्रेट ब्रिटेन में नस्ल, धर्म, क्रिकेट और राजनीति के रिश्तों पर चर्चा की गई है। वे उस विवाद के सहारे बात करते हैं जिसने पिछले कुछ वक्त से इंग्लैंड के क्रिकेट संसार को झकझोर रखा है। यॉर्कशायर के खिलाड़ी अज़ीम रफ़ीक़ ने यॉर्कशायर काउंटी क्रिकेट क्लब पर नस्लवादी भेदभाव का आरोप लगाया था। उनका इलज़ाम था कि यह मामला किसी एक घटना या एक व्यक्ति से जुड़ा नहीं है बल्कि संस्थागत या संरचनागत है। इस आरोप से खलबली मच गई और जाँच के लिए एक समिति बनाई गई।
भेदभाव के ख़िलाफ़ इंग्लैंड के सख़्त रुख से कुछ सीखेगा भारत?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 8 Nov, 2021

इंग्लैंड की मीडिया ने भेदभाव की निंदा तो की ही, क्रिकेट प्रशासन ने जिस तरह इसे निपटाने की कोशिश की, उसकी भी भर्त्सना की। लेकिन इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड ने दखल दिया और यॉर्कशायर क्लब को अनुशासित किया। ऐसा इंग्लैंड में हो सकता है लेकिन भारत में इसकी कल्पना करना कठिन है।
तकरीबन एक साल बाद जब इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड ने पूछा कि रिपोर्ट कब जारी की जाएगी तो यॉर्कशायर क्लब ने बयान जारी किया।
इस बयान में उसने साफ़ तौर पर नस्लवादी भेदभाव की बात कबूल नहीं की लेकिन स्वीकार किया कि अज़ीम अनुचित बर्ताव के शिकार हुए हैं।