राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और भारत के रक्षा प्रमुख के दो बयानों ने भारत के लोगों को अचानक अत्यंत असुरक्षित कर दिया है। दो रोज़ पहले हैदराबाद की राष्ट्रीय पुलिस अकेडेमी में अपने काम पर जाने को तैयार पुलिस अधिकारियों के प्रशिक्षण के दीक्षांत समारोह के मौक़े पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने कहा कि युद्ध का नया मोर्चा अब नागरिक समाज है। अंग्रेज़ी में जिसे 'सिविल सोसाइटी' कहते हैं।
डोभाल का बयान खतरे की सबसे बड़ी घंटी!
- विचार
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- 14 Nov, 2021

अगर यह नागरिक समाज न होता तो सूचना के अधिकार या रोज़गार गारंटी या शिक्षा के बुनियादी अधिकार जैसे क़ानूनों का बनना कठिन होता। विकास के तर्क के मुक़ाबले आदिवासियों के पारंपरिक अधिकार या पर्यावरण के संरक्षण के प्रश्न भी इस नागरिक समाज ने ही उठाए।
उनके मुताबिक़ अब युद्ध बहुत महँगे हो गये हैं। इसलिए पारम्परिक तौर पर उन्हें लड़ना कठिन होता जा रहा है। फिर देश के ख़िलाफ़ जो शक्तियाँ हैं, या जो शत्रु देश हैं, वे अब देश के नागरिक समाज को भरमा कर, अपने अधीन कर के प्रलोभित या विभाजित कर के, उन्हीं के सहारे या उनकी आड़ में देश के विरुद्ध युद्ध करेंगे। इस तरह देश को भीतर से ही तोड़ा जा सकता है। इसलिए देश की रक्षा में अब सेना के साथ पुलिस को भी अतिरिक्त रूप से चौकन्ना रहना पड़ेगा।
देश के अंदर के शत्रु
इस बयान में, जो कि बिल्कुल नए पुलिस अधिकारियों को एक निर्देश भी है पुलिस और सेना के बीच भेद मिटा दिया गया है। पहले युद्ध सीमाओं पर लड़ा जाता था। शत्रु दूसरे देश का होता था। अब कहा जा रहा है कि वह देश के भीतर लड़ा जाएगा और देश के दुश्मन या उन दुश्मनों के दलाल, देश के भीतर ही हैं और लड़ना अब उनसे है। देश को तोड़ने या कमजोर करने का काम चूँकि विदेशी शक्तियाँ इनके माध्यम से करेंगी या कर रही हैं, इन पर नज़र रखना, इनकी निशानदेही करना अब पुलिस का काम है।