वर्षारंभ पर एक नई अवधारणा का उपहार भारतीयों को दिया गया: ‘ऑटोमैटिक पैट्रीअट’। बताया गया कि हिंदू ‘ऑटोमैटिक पैट्रीअट’ होते हैं। यानी हिंदू होने का अर्थ ही ‘पैट्रीअट’ होना है। उसके लिए उसे कुछ अलग से करने की ज़रूरत नहीं होती। वह जीवन भर कुछ भी करता रहे, या न करता रहे, वह ख़ुद ही अपनी तिजोरी भरता रहे या दूसरों की जान लेता रहे, ‘पैट्रीअट’ वह बना रहेगा। दोनों भूमिकाओं में कोई विरोध नहीं है। यह क्या हिंदू की परिभाषा है या उसकी विशेषता? तो फिर ‘पैट्रीअट’ के आगे हिंदू लगाना शब्द का अपव्यय है नहीं?
हिंदू ‘ऑटोमैटिक पैट्रीअट’ तो सिख, ईसाई, मुसलिम क्या हैं?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 4 Jan, 2021

आजकल हर पैट्रीअट शांतिनिकेतन की दौड़ लगा रहा है। कुछ नारदवृत्तिधारी इस तीर्थयात्रा में भी सांसारिक प्रयोजन सूंघ रहे हैं। सांसारिक कारण से ही सही, अगर कोई पवित्रता का स्पर्श पा ले तो क्या बुरा! लेकिन शांतिनिकेतन के ऋषि ने तो कहा था कि ‘पैट्रीअटिज़्म हमारा अंतिम आध्यात्मिक आवास नहीं हो सकता।
लेकिन हिंदू तो सिर्फ़ उस भूभाग में नहीं पाए जाते जिसे भारत कहते हैं। ईश्वर की कृपा से वे अफ्रीका, अमरीका, कनाडा, इंग्लैंड तमाम जगह पाए जाते हैं यहाँ तक कि बावजूद सारी हिंसा के पाकिस्तान में भी। और वहाँ वे फल फूल रहे हैं। यहाँ तक कि मंत्री और राष्ट्र प्रधान तक बनाए जा रहे हैं। और उन देशों की ‘मूल’ जनता उनकी इस तरक्की पर स्यापा नहीं करती। एक प्रीति पटेल या ऋषि सुनाक के मंत्री बनने से उस देशपर कोई ख़तरा नहीं आ जाता।