भारत जैसे विविधता वाले देश में आख़िर समुदायों के बीच नफ़रत कैसे फैल रही है? क्या यह अकस्मात है या फिर इसके पीछे कोई ताक़त है? आख़िर ऐसी नफ़रत बोने वाले लोग कौन हैं?
धार्मिक-जातीय समुदायों की भावनाएं इतनी ज़्यादा क्यों आहत हो रही हैं? क्या ये नस्लवाद सोच की उपज है? आख़िर ये आहत भावनाओं का नरैटिव कहाँ निर्मित हो रहा है?
भारत में हाल में राष्ट्रवाद पर इतना ज़ोर क्यों दिया जा रहा है? राष्ट्रवाद कितना अहम है और इसके नाम पर दुनिया भर में कैसे-कैसे घटनाक्रम घटे हैं? पढ़िए, राष्ट्रगान लिखने वाले रवींद्रनाथ टैगोर का क्या मानना था।
भारतीय राष्ट्रवाद और हिन्दू राष्ट्रवाद क्या एक ही चीज़ है? हिंदू राष्ट्रवाद की जड़ें कहां हैं, उसकी पहचान क्या है और उसको फासीवाद से क्यों जोड़ा जाता है? इन्हीं सवालों पर केंद्रित है सत्यहिंदी का वेबिनार।
आरएसएस के मुखिया मोहन राव भागवत ने फरमाया है कि अगर कोई हिंदू है तो वह देशभक्त ही होगा, क्योंकि देशभक्ति उसके बुनियादी चरित्र और संस्कार का अभिन्न हिस्सा है। तो फिर नाथुराम गोडसे, सिख विरोधी दंगे में शामिल लोग कौन थे?
वर्षारंभ पर एक नई अवधारणा का उपहार भारतीयों को दिया गया: ‘ऑटोमैटिक पैट्रीअट’। बताया गया कि हिंदू ‘ऑटोमैटिक पैट्रीअट’ होते हैं। यानी हिंदू होने का अर्थ ही ‘पैट्रीअट’ होना है।