जैनेन्द्र का आज यानी 2 जनवरी को जन्मदिन है। हिंदी पढ़नेवाले सारे लोगों को याद भी न होगा। मुझे भी कहाँ था? किसी ने ध्यान दिलाया। मेरी किताबों की आलमारी में सबसे ऊपर के खाने में वे प्रतिष्ठित हैं। इसका अर्थ सिर्फ यह है कि उनसे रोज़ाना मुलाकात नहीं की जाती। लेकिन इससे जैनेन्द्र को क्या? वे जो एक भौतिकता से मुक्त एक दूसरी अविनश्वर भौतिकता में स्थिर हैं, उन्हें प्रयोजन से प्रयोजन क्या? वह कृतित्व आश्वस्त है कि उसमें पर्याप्त आकर्षण है। कृतार्थ उसे नहीं होना है। उसके बाद की पीढ़ियाँ भी खोज ही लेंगी उसे, यह यकीन है।
जैनेंद्र : हिंदू राष्ट्रवाद के लिये ... मेरे मन में तनिक भी आकर्षण नहीं है!
- साहित्य
- |
- |
- 2 Jan, 2021

“इसलाम को माननेवाला भारतीय अरब से अपनी स्फूर्ति लाता है, तो बुरा क्या करता है? स्फूर्ति तो उपयोगी चीज है। ... मुसलमान का देश भारत था, तीर्थ अरब था। उस तीर्थता से भारत को नुक़सान क्या था? धर्म भाव आदमी कहीं से भी प्राप्त करे, लाभ तो उसका आस-पास के समुदाय को मिलता है। आप क्या इस कारण कि ब्रह्मपुत्र का स्रोत तिब्बत में (और आज चीन में) है, तो आप उसके जल को अपवित्र और विदेशी मानेंगे?"
गोर्की की श्रेणी के लेखक
पाठकों के लिए जैनेन्द्र ‘परख’, ‘सुनीता’ और ‘त्यागपत्र’ जैसी कृतियों के कारण लोकप्रिय और चुनौती भी हैं। इस पर ताज्जुब हो सकता है कि प्रेमचंद के सबसे प्रिय जन और लेखक जैनेन्द्र थे। प्रेमचंद उन्हें गोर्की की श्रेणी का लेखक मानते थे।
प्रेमचंद की परंपरा के वाहकों ने लेकिन जैनेन्द्र को उससे बाहर रखा। जैनेन्द्र का प्रेमचंद अनुराग छिपा हुआ नहीं है, लेकिन कथाकार के तौर पर उनकी राह अलग थी। विचारों के नाटक में उनकी दिलचस्पी अधिक थी। प्रेमचंद की थी मनुष्यों की भीड़भाड़ में, उसके शोर-शराबे में।
आज लेकिन आज के समय के दबाव में अपनी दुविधाओं से जूझते हुए जैनेन्द्र के निकट जाता हूँ। उनके कथा साहित्य तक नहीं, विचारों की उनकी दुनिया में। वैसे कहानियों के बारे में, जैसी वे लिखना चाहते थे, जो उन्होंने लिखा, उसे पहले पढ़ लें:
“कसरती कल्पना का ‘रोमांस’ नहीं चाहता। घास के किल्ले जो भींगी धरती में अपने घूँघट में से उंझक कर एक प्रातः काल अनायास उत्सुक, खिलती धूप देखने लगते हैं और फिर क्षण होते न होते एकाएक ही युद्ध के लिए जाते हुए योद्धाओं के असंख्य बूटों के तले कुचलकर वहीं रह जाते हैं—कुछ वैसा ही कोलाहल शून्य, मूक, ‘रोमांस’ भी चाहता है। जगमग नहीं चाहता।”