जैनेन्द्र का आज यानी 2 जनवरी को जन्मदिन है। हिंदी पढ़नेवाले सारे लोगों को याद भी न होगा। मुझे भी कहाँ था? किसी ने ध्यान दिलाया। मेरी किताबों की आलमारी में सबसे ऊपर के खाने में वे प्रतिष्ठित हैं। इसका अर्थ सिर्फ यह है कि उनसे रोज़ाना मुलाकात नहीं की जाती। लेकिन इससे जैनेन्द्र को क्या? वे जो एक भौतिकता से मुक्त एक दूसरी अविनश्वर भौतिकता में स्थिर हैं, उन्हें प्रयोजन से प्रयोजन क्या? वह कृतित्व आश्वस्त है कि उसमें पर्याप्त आकर्षण है। कृतार्थ उसे नहीं होना है। उसके बाद की पीढ़ियाँ भी खोज ही लेंगी उसे, यह यकीन है।