नागरिक का दर्जा सबसे ऊपर है। जब नागरिक और राज्य के बीच टकराव हो तो राज्य या सरकार की असीमित बल प्रयोग की शक्ति पर अंकुश लगाने और नागरिक की आज़ादी की हिफ़ाज़त करना अदालतों का सबसे बड़ा फ़र्ज़ है।
इन्साफ़ और सरकार में से अदालत किसको चुनेगी?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 20 Dec, 2020

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रास्ता किसानों ने नहीं आपने, यानी आपकी पुलिस ने रोका है। कहा कि सरकार किसानों पर कोई ज़बर्दस्ती नहीं करेगी। आंदोलनकारियों के प्रति अदालत की यह नरमी और सहानुभूति उसके पिछले व्यवहार से इतनी असंगत है कि अविश्वसनीय जान पड़ती है। कविता और साहित्य में तो असंगति चल सकती है जैसा वाल्ट व्हिटमैन ने लिखा है। लेकिन न्याय के मामले में असंगति उसे संदिग्ध बना देती है।
यह बात बार-बार कही जाती रही है। इधर कई बड़े वकील और पूर्व न्यायाधीश इस प्राथमिक सिद्धांत को हर मौक़े पर दुहरा रहे हैं। ज़ाहिर है, वे नागरिक और राज्य को ही सिर्फ़ संबोधित नहीं कर रहे वे अदालत को भी कुछ बता रहे हैं।
कृषि से जुड़े नए क़ानूनों का विरोध कर रहे किसान-संगठनों ने सर्वोच्च न्यायालय की मध्यस्थता की पेशकश की जयकार नहीं की है। वे इस प्रस्ताव को एक लुभावना फंदा मान रहे हैं जिसपर एक बार क़दम रख देने के बाद उनका निकलना असंभव नहीं तो मुश्किल हो जाएगा। अदालत को लेकर जो संकोच किसानों में है, उससे अदालत के बारे में सामान्य जनता में, ख़ासकर इस सरकार के आलोचकों और विरोधियों में जो संदेह है, उसी का एक और प्रमाण मिलता है। उसकी निष्पक्षता और न्यायधर्मिता शक के घेरे में है और अब अदालत को साबित करना है कि वह सरकार से ज़्यादा इन्साफ़ के लिए चिंतित है।