यात्रा मंज़िल पर पहुँचने के लिए की जाती है। लेकिन यात्रा सिर्फ़ मंज़िल के बारे में नहीं होती। वह उस रास्ते के बारे में होती है जो उस मंज़िल तक ले जाता है। और जैसे यात्राएँ एक नहीं होतीं, रास्ते भी अलग-अलग तरह के हो सकते हैं। लक्ष्य क्या है, इससे रास्ते की प्रकृति तय होती है। कुछ रास्ते सीधे होते हैं, निर्बाध। लेकिन कुछ दुष्कर होते हैं। दुर्गम। कंटकाकीर्ण। इसलिए हर यात्रा दुस्साहस नहीं होती, एडवेंचर का दर्जा हर सफ़र को नसीब नहीं। उसी तरह हर चलनेवाले को यात्री कहलाने का गौरव नहीं प्राप्त होता। हर यात्रा की कहानी नहीं बन पाती।