यात्रा मंज़िल पर पहुँचने के लिए की जाती है। लेकिन यात्रा सिर्फ़ मंज़िल के बारे में नहीं होती। वह उस रास्ते के बारे में होती है जो उस मंज़िल तक ले जाता है। और जैसे यात्राएँ एक नहीं होतीं, रास्ते भी अलग-अलग तरह के हो सकते हैं। लक्ष्य क्या है, इससे रास्ते की प्रकृति तय होती है। कुछ रास्ते सीधे होते हैं, निर्बाध। लेकिन कुछ दुष्कर होते हैं। दुर्गम। कंटकाकीर्ण। इसलिए हर यात्रा दुस्साहस नहीं होती, एडवेंचर का दर्जा हर सफ़र को नसीब नहीं। उसी तरह हर चलनेवाले को यात्री कहलाने का गौरव नहीं प्राप्त होता। हर यात्रा की कहानी नहीं बन पाती।
किसान आंदोलन: इन्साफ़ का ख़याल ज़िंदा रखने का सफ़र
- वक़्त-बेवक़्त
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- 14 Dec, 2020

क्या यह सफ़र मंज़िल तक पहुँचेगा? यह क्या सिर्फ़ इन्साफ़ के इन मुसाफ़िरों पर निर्भर है? पिछले साल एक और सफ़र शुरू हुआ था। वह मंज़िल तक नहीं पहुँच सका तो क्या वह निरर्थक हो गया? उस सफ़र से जो अलग रहे, जिन्होंने रास्ते में रोड़े डाले, जिन्होंने मुसाफ़िरों का क़त्ल किया, क्या वे विजयी हुए? जो खेत रहे, वे पराजित और इसलिए निरादृत भी?
प्रोफ़ेसर यशपाल प्रायः कहा करते थे कि यात्रा करते हुए लक्ष्य पर ध्यान रहना चाहिए, लेकिन मार्ग की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। मंज़िल तक जाने के सीधे रास्ते से उतर कर रास्ते के जंगल, बीहड़, नदी, झील के पास भी कुछ वक़्त गुजार लेने का वक़्त अगर आप नहीं निकाल पाते तो आप सच्चे यात्री नहीं हैं।