भूखे भजन न होई गोपाला। पुरानी कहावत है। जब मैं हर रात इस चिंता में रहूँ कि कल सुबह खाना नसीब होगा कि नहीं, कितने बजे आएगा, कितना मिलेगा, वह मुझे, मेरी बच्ची और परिवार को पूरा पड़ेगा कि नहीं, मेरी बच्ची को दूध मिल पाएगा या नहीं और ठीक इसी घड़ी कोई मेरी आध्यात्मिक चिकित्सा करने आ धमके तो मैं उसके साथ कैसा बर्ताव करूँगा?
पलायन: मी लॉर्ड! भूखे पेट के आगे ईश्वर चर्चा का क्या लाभ?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 2 Apr, 2020

याचिका तालाबंदी के बाद हज़ारों लोगों के विस्थापन और उनकी यातना के बारे में थी। लेकिन उसके फ़ैसले का दिलचस्प और विडंबनापूर्ण हिस्सा वह है जिसमें अदालत इन विस्थापित श्रमिकों के मानसिक उद्वेलन को लेकर चिंतित है। सरकार भी इन्हें आध्यात्मिक शांति देने के लिए प्रतिबद्ध है। वह इनके राहत शिविरों में हर धर्म के उपदेशकों को भेजेगी, यह आश्वासन उसने अदालत को दिया। और अदालत ने भी इसे संतोष के साथ दर्ज किया।
सर्वोच्च न्यायालय को उन श्रमिकों के मानसिक स्वास्थ्य की चिंता है जो बदहवासी में अपने-अपने काम की जगह छोड़कर सैकड़ों यहाँ तक कि हज़ार-हज़ार मील तक पैदल चलकर अपने घर, गाँव के लिए निकल पड़े। उसके सामने उन श्रमिकों के कष्ट निवारण के लिए एक याचिका थी। अदालत ने सरकार को सुना, उसकी अब तक की कार्रवाई की रिपोर्ट देखी और संतोष ज़ाहिर किया कि कोरोना संक्रमण को रोकने का हर संभव प्रयास सरकार कर रही है। लेकिन जिस बात पर उसे विचार करना था, वह यह न थी। विचारणीय थी इन लाखों श्रमिकों की यातना।